सूतांजली ०२/०४ नवंबर २०१८
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साध्य ही नहीं साधन भी पवित्र होना
चाहिए
चम्पारण
के अपने अनुभवों को लिपि बद्ध करते हुए अनुग्रह नारायण सिंह (गांधी मार्ग
मई-जून २०१७) गांधी की विचित्र सोच पर लिखते हैं:
पटना
से निकल कर हम लोग बेतिया में फिर इकट्ठे हुए। कमिटी के सामने कौन-कौन गवाह पेश
किए जाएँ, कौन-कौन बयान रखे जाएँ इन सब पर विचार होने लगा।
महात्माजी कमिटी के एक सदस्य घोषित किए गए और सदस्य के नाते उनके पास पुरानी सारी
गोपनीय किताबें, सरकारी रिपोर्टें भेज दी गईं। हम लोगों ने
उन रिपोर्टों को पढ़ा और दूसरों को भी बताया। महात्माजी को जब मालूम पड़ा तो वे बहुत
बिगड़े। बोले, जब सरकार की ओर से ये कागजात हमारे
विश्वास पर दिये गए हैं, तब इनके बारे में
दूसरों को कुछ बताना विश्वासघात हुआ। हमलोगों को यह
बात समझ में तो नहीं आई पर दोष स्वीकार कर लेने में ही भलाई थी।
तहक़ीक़ात
का दिन सुनिश्चित होने पर सरकार की ओर से जिला मजिस्ट्रेट की गवाही की बात हुई।
कॉक साहब जिला मजिस्ट्रेट थे। वे एक सीधे ईमानदार आदमी थे। उनकी रिपोर्ट चंपारण के
किसानों के अनुकूल थी। उनके स्टेनोग्राफर ने रिपोर्ट की एक कॉपी चुपचाप हमलोगों के
पास भेजी। हम लोगों ने वह पढ़ी और फिर महात्माजी को दे दी। महात्माजी ने पूछा कि यह
क्या है? जब हमलोगों ने सारी बात बताई तब उन्होने उस कागज
को देखने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि यह रिपोर्ट हमें चोरी से मिली
है। हमें इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। यदि स्टेनोग्राफर अपनी नौकरी से
इस्तीफा देने को तैयार हो और खुले रूप से रिपोर्ट लेकर हमारे पास आए तो मैं सोच
सकता हूँ कि इस रिपोर्ट को पढ़ूँ या न पढ़ूँ। हम लोग आश्चर्य चकित हो गए। मेरे मन
में तो यह ख्याल आ ही नहीं सकता था कि इतना जरूरी कागज मेरे पास आए और मैं उसे
लेने या पढ़ने से इंकार कर दूँ। पर बापू कुछ अलग ही सोचते थे। उनकी बात हमने समझी
और रिपोर्ट वापस कर दी गई।
नेताओं
के व्यक्तिगत जीवन और सार्वजनिक विचार में तब भेद किया जाता था। किसी का व्यक्तिगत
चरित्र कैसा भी क्यों न हो, यदि वह राजनीति में हिस्सा लेता है तो वह बड़ा नेता
है। उनके पास जो भी जरूरी कागजात आएँ, चाहे वे किसी भी तरीके
से क्यों न आए हों, उसका इस्तेमाल करने में कोई आपत्ति, सदाचार की दृष्टि से भी, नहीं मालूम देती थी।
महात्माजी ने इस पूरे प्रश्न पर नया ही प्रकाश डाला। भविष्य में व्यक्तिगत और
सार्वजनिक जीवन के भेद को मिटाने कि उन्होने बड़ी कोशिश की और कुछ हद तक वे सफल भी
हुए।
सुभाष चंद्र बोस से गांधी का प्रमुख मतभेद यही था। सुभाष मानते थे
कि साध्य अगर पवित्र है तो साधन की परवाह नहीं करनी चाहिए। लेकिन गांधी का दृड़
विश्वास था कि साध्य कितना ही पवित्र हो अगर साधन पवित्र नहीं है तो साध्य पवित्र
नहीं रह सकता। गांधी ने हिंसक रास्ते से आजादी
खोजने वालों से कह दिया था कि खून से निकलने
वाला समाज भी खूनी ही होगा। और वैसा भारत मुझे कबूल नहीं। उन्होने सुभाष बोस से कह
दिया की हिटलर और मुसोलिनी की मदद से मिली
आजादी अंग्रेजों की गुलामी से बेहतर नहीं हो सकती।
गांधी बनाम गांधीवादी
व्यवहार
चतुर लोगों ने कहा, ‘सीधी अंगुली से घी
नहीं निकलता’। व्यापारी बोलते हैं, ‘यह दुनिया भले आदमियों की नहीं है’। कूटनीतिज्ञ कहते हैं, ‘कांटे से ही कांटा निकल सकता है’। संसारी
तत्वज्ञ कहते हैं, ‘यह जगत साधुओं
की नहीं है’। यानि प्रत्येक व्यक्ति की शिकायत दूसरे
प्रत्येक व्यक्ति के खिलाफ है। गांधीजी ने सबकी बात सुनी और कहा, ‘ये सब दुनिया के बारे में शिकायत करने वाले
हैं। उनका मतलब यह है कि अगर दुनिया में त्रुटियाँ नहीं होती तो हमें पसंद आती। उन लोगों के मन में यह भावना
छिपी हुई है कि मैं उन बुरे लोगों में नहीं हूँ। मैं तो सीधा सदा हूँ लेकिन इस
टेढ़ी दुनिया में मुझे भी देढ़ा बनना पड़ता है। मैं तो भला हूँ लेकिन इस बुरी
दुनिया में मुझे भी बुरा बनना पड़ता है। दुनिया की इस निंदा में यह असंतोष
है कि वह सतप्रवृत्त एवं सदगुण संपन्न नहीं है; परंतु
उसे वैसा होना चाहिए, यह गर्भित इच्छा भी है।
दुनिया
का हर आदमी यही कहता है कि यह संसार इसी तरह दु:साध्य एवं दुराध्य है। हरेक
की शिकायत दूसरे सब लोगों के खिलाफ है।
इसका मतलब यह हुआ कि मनुष्य व्यक्तिश: (individually) सतप्रवृत्त एवं सदाकांक्षी है, लेकिन समूहश: (in group) असत प्रवृत्त एवं
असदाकांक्षी है। लेकिन यह भी सही
नहीं है । केवल दृष्टि में परिवर्तन करने का है। ‘दुनिया बुरी है इसलिए मूझे भी
बुरा बनना पड़ता है’, इसके बजाय अगर प्रत्येक व्यक्ति
यह संकल्प करे कि, ‘दुनिया चाहे
जैसी चले, लेकिन मैं तो नेकी और प्रेम से चलूँगा’, तो दुनिया का कायाकल्प होगा। इसीको बापू हृदय परिवर्तन का
तत्व कहते थे।
गांधीवादी कहता है, ‘मैं तराश-खराश कर दूसरों के स्वभाव को पूरा मुलायम
बना दूँगा’। बापू कहते थे, ‘मैं पहले अपने स्वभाव के दोषों को दूर करूंगा’।
अक्तूबर
में “कौन जानता गांधी को”
2 अक्तूबर 2018, गांधी की 150वीं जयंती के प्रारम्भ होने के पूर्व हमने
गांधी प्रश्नोत्तरी का खेल “कौन जानता गांधी को” का शुभारंभ 30 सितम्बर को किया।
अध्यापकों, प्रधानाध्यापकों, संचालकों, न्यासियों (trustees) तथा शहर के अन्य गणमान्य लोगों
को इस खेल की झलक दिखाई गई।
‘कौन जानता गांधी को’ एक गांधी
प्रश्नोत्तरी का खेल है जिसे शहर के विद्यालयों में खिलाने की व्यवस्था की गई है।
विद्यार्थियों की उम्र को ध्यान में रखते हुए इस खेल को तीन भागों में बांटा गया
है – जूनियर या प्राइमरी (कक्षा 1-5), मीडियम या सेकेंड्री
(कक्षा 6-8) तथा सीनियर या उच्चतर माध्यमिक (कक्षा 9-12)।
उद्घाटनके पश्चात इस खेल का आयोजन शहर के दो
विद्यालयों में यथा सेठ सूरजमल जालान बालिका विद्यालय तथा मारवाड़ी
बालिका विद्यालय में क्रमश: 6 एवं 11 अक्तूबर को सफलता पूर्वक किया गया।
छात्राओं के अतिरिक्त अध्यापिकाओं ने पूरे खेल को बड़े ध्यान से देखा, सराहा और कहा कि बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उनके
लिए भी खेल ज्ञानवर्द्धक तो है ही, इसकी प्रस्तुति भी बहुत
मनोरंजक होने के कारण पूरे समय तक सबों को बांध कर रखती है। विजेताओं को गांधी साहित्य
तथा प्रतिभागियों को एक वर्ष की “गांधी मार्ग” की सदस्यता हमारी तरफ से प्रदान की
गई। 13 अक्तूबर से शहर के विद्यालयों में दुर्गा पूजा की छुट्टियाँ प्रारम्भ हो
गईं।
इस कार्यक्रम का आयोजन आगामी 2 अक्तूबर 2019 तक करने
का निश्चय किया गया है।
संपादक
सेठ सूरजमाल बालिका विद्यालय |
मारवाड़ी बालिका विद्यालय |