मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

सूतांजली, अक्तूबर २०१७


सूतांजली                                              ०१/०३                                        ०१.१०.२०१७
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मजबूरी का नाम म** *धी
मजबूर! किसे कहते हैं मजबूर? उसे जो परिस्थितिवश बदल जाय  या उसे जो  परिस्थिति को बदल दे ? मैं पूरी तरह भ्रमित हूँ।

दक्षिण अफ्रीका पहुँचते ही वहाँ की रंग भेद नीति की गंध महसूस होने के बावजूद सब की सलाह को दरकिनारे करते हुवे रेल के प्रथम श्रेणी में सफर करने वाला इंसान मजबूर ही रहा होगा?
·        रेल में सफर करने वाले गोरे यात्रियों की परवाह न कर पुलिस के कहने पर भी तीसरे दर्जे में सफर करने  के बजाय प्लैटफ़ार्म पर फेंके जाने के लिए तैयार व्यक्ति मजबूर रहा होगा?
·     अदालत द्वारा पगड़ी को हटाने का निर्देश देने पर पगड़ी हटाने के बदले अदालत छोड़ कर जाने वाला इंसान मजबूर तो रहा ही होगा?
·     बीच सड़क पर अपने ही वतन के लोगों द्वारा इतनी पिटाई खाई की अगर गोरे बचाने नहीं आ जाते तो  वह शायद उसके जीवन का अंतिम दिन होता। कारण-वह अपने सिद्धांतो और विचारों सेमजबूर था।
·   गोरी सरकार और गोरों के हिंसात्मक विरोधों के बावजूद मय परिवार के वापस दक्षिण अफ्रीका पहुंचा। फिर से सड़क पर मार पड़ी। गोरे दोस्तों के कारण बचा। उसकी मजबूरी थी अपने देश वासियों के प्रति अपने उत्तरदायित्व और दिये गए वचन के निर्वाह की।
·    बनारस में मंच पर उपस्थित राजे-महाराजे एवं विशिष्ट-गणमान्य व्यक्तियों की परवाह  न कर उनके ही खिलाफ वक्तव्य देने की कोई तो मजबूरी रही होगी?
·     जब देश के सब साधन सम्पन्न शीर्ष एवं बड़े नेता चंपारण को अनदेखा कर रहे थे किसी मजबूरी के कारण ही वह वहाँ पहुंचा होगा।
·     चंपारण में नीलहे मालिकजिलाध्यक्षन्यायालय एवं सरकार द्वारा चंपारण छोड़ने के हुक्म को मनाने से इंकार करने की भी कोई मजबूरी रही होगी।
·     एक के बाद एक दो मुकदमों- न्यायालय की अवमानना और देशद्रोहमें अपने पर लगे इल्जाम को कबूलते हुवे कहा कि उसे कड़ी से कड़ी सजा सुनाई जाए।  बेचारा मजबूर इंसान।
·    जब पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था उस समय नोआखाली के मुस्लिम बाहुल्य प्रदेश में जहां हिंदुओं का कत्लेआम किया गया था अपने मुट्ठीभर साथियों के साथ निहत्थे लेकिन निर्भय घूमने के पीछे भी कोई मजबूरी ही रही होगी?
·      नोआखाली में मुसलमानों का हिंदुओं द्वारा मुसलमानों को माफीनामादेने का प्रस्ताव”  रद्द कर कहा कि जघन्य अपराधियों को सबसे पहले बिना किसी शर्त के समर्पण करना चाहिए। कोईमजबूरी ही रही होगी इस निर्णय  की?
·      बिहार के दंगा ग्रस्त इलाके में  एक हिन्दू एक   मुसलमान परिवार की ह्त्या कर  उस परिवार के 2 माह के एक बच्चे को लाया आया और पूछा कि बताओ मैं इस बच्चे का क्या करूँउसने सुझाव दिया कि इस बच्चे के लालन पालन का उत्तरदायित्व तुम लो और इस बात का ध्यान रखो कि यह बच्चा बड़ा हो कर एक सच्चा मुसलमान बने।  क्या मजबूरी रही होगी इस फैसले  की ?

 अगर इसे ही मजबूर इंसानकहते हैं तो हे ईश्वर! हे परवरदिगार! या अल्लाह! अगर तू कहीं है और मुझे सुन रहा है तो हमें ऐसा ही एक, सिर्फ एक ही मजबूर व्यक्ति दे दे।


                                                                           मैंने पढ़ा
गांधी जी का सेव                          (कुरजां से साभार)
वर्धा के गांधी आश्रम में बुनियाद शिक्षा का मसौदा बन रहा था। डॉ. जाकिर हुसैन, के.टी.शाह, जे.बी.कृपलानी, आशा देवी आदि कई लोग मौजूद थे। बापू ने पूछा, “के.टी. अपने बच्चों के लिए कैसी शिक्षा तैयार कर रहे हो? सब चुप रहे। के.टी. ने पूछा, “बापू, आप ही बताइये कि कैसी शिक्षा हो? बापू ने कहा, “के.टी., अगर मैं किसी भी कक्षा में जाकर पूछूं कि मैंने एक सेब चार आने में खरीदा और उसे एक रुपए में बेचा दिया तब मुझे क्या मिलेगा? मेरे इस प्रश्न के जवाब में अगर पूरी कक्षा यह कहे कि आपको जेल मिलेगी, तब मानूँगा कि आजाद भारत के बच्चों के सोच के मुताबिक शिक्षा है।बापू के इस सवाल पर सब दंग रह गये। वास्तव में किसी व्यापारी को यह हक नहीं कि वह चार आने के चीज पर बारह आने लाभ कमाये। इस प्रकार बापू ने एक प्रश्न के जरिये नैतिक शिक्षा का संदेश बिना बताये ही दे दिया।

एक विश्लेषण के अनुसार भारत की  प्रथम १०० कंपनियों (निजी एवं सरकारी मिलाकर) का वर्ष २०१६ में शुद्ध लाभ ३,७४,५५७.८१ करोड़ थायानि औसतन ३७४५.५८ करोड़। इस आंकड़े के  १००वां प्रतिष्ठान का दैनिक लाभ २ करोड़ रुपये है।  इन आंकड़ों को गांधी के विचारों के साथ जोड़ कर  समझने की आवश्यकता है। यह न किसी सरकार से संभव है न किसी कानून के तहत। गांधी की  आर्थिक आजादी तो जागरूकता के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।


अहा जिंदगी, जुलाई 2017, अनुपमा ऋतु, पृ. 11
आज दुनिया भर के अर्थशास्त्री पूंजी के नये मायने तय कर रहे हैं। उनकी नई परिभाषा में सबसे ऊपर है मानवीय पूंजी यानि मनुष्यता। दूसरे नंबर पर है सामाजिक पूंजी यानि रिश्ते। तीसरे पर है प्राकृतिक पूंजी यानि पर्यावरण। चौथे पर मानवनिर्मित पूंजी यानि इन्फ्रास्ट्रक्चर और सबसे निचली पायदान पर है आर्थिक पूंजी यानि मुद्रा। 2010 में हुवे एक शोध में यह निष्कर्ष दिया गया कि किसी भी समाज के सुख का मुख्य कारण वैयक्तिक पूंजी नहीं सामाजिक जुड़ाव है। पर विडम्बना यह है कि हमारी दौड़ इस आखरी पायदन पर आकर ठहर गई है।
महात्मा गांधी ने जब कहा कि यंत्र और उद्योग कि परवशता और उससे जन्मी अर्थ पिपासा का इलाज होना चाहिए,तब वे भी हमें विकास, प्रगति और सुख के इन्ही मायनों पर पुनर्विचार के लिए आग्रह कर रहे थे जिनके लिए आज विज्ञान कर रहा है।

हमें अंग्रेजों का राज्य तो चाहिए पर अंग्रेज़ नहीं चाहिए। इस बाघ  का  स्वभाव तो चाहते हैं पर बाघ को नहीं चाहते। मतलब यह कि हम हिंदुस्तान को अंग्रेज़अँग्रेजी तौर-तरीकेशक्ल सूरतवाला बनाना चाहते हैं। पर तब तो वह हिंदुस्तान नहीं इंगलिस्तान कहलाएगा। मैं ऐसा स्वराज नहीं चाहता।

आजादीलेकिन किसकी आजादीकिससे आजादी और कैसी आजादीयह भी तय करना पड़ेगा क्योंकि इसके बिना आजादी आती नहीं हैगुलामी ही रूप बदल कर आ धमकती है।

मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

सूतांजली, सितंबर २०१७


सूतांजली                                         ०१/०२                                          ०१.०९.२०१७
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गांधी हो या बुद्ध, राम हो या कृष्ण, सूर हो या तुलसीये कालजयी हैं। साहित्य एवं लोक में इनकी सकारात्मक पक्षका  ही गायन किया जाता  है। स्थापित वही होता है जिनके सकारात्मक पक्ष की ही बातें  सुनी और पढ़ी जाती हैं। तब  फिर हम प्रेम-कर्तव्य-त्याग सच्चाई-अहिंसा-अपरिग्रह-ईमानदारी की घटनाओं के बदले स्वार्थ- वैर-राग-द्वेष-झूठ-हिंसा की घटनाओं की बातें ही ज्यादा क्यों करते और सुनते हैं? समाज तो वैसा ही बनेगा जैसी हम चर्चा करेंगे?अगर हमने यही मन बना लिया है कि हमें ऐसा ही समाज बनाना है तब कोई बात नहीं। लेकिन अगर हम ऐसे समाज में रहने के लिए तैयार नहीं हैं तब यह बदलना पड़ेगा। हमें सकारात्मक घटनाओं और गुणों की ही बातें करनी होगी जिन्हे हम अपने इर्द गिर्द घटते हुवे देखना चाहते हैं। पड़ोसी की प्रतीक्षा न कर सूत्रपात हमें ही करना होगा। सूते को अंजलि भर बांटना होगा जिससे मनका मनका जोड़ कर माला पिरो सकें। यही है सूतांजली।


मैंने सुना
मुझे गांधी क्यों प्रेरित करते हैं?                                - कुमार प्रशांत (अधीक्षक, गांधी शांति प्रतिष्ठान)
1 मई 2017भारतीय संस्कृति संसद अनौपचारिक विमर्श      -पिछले पत्र से आगे
   
सबों को देखते हुवे एक ऐसी जगह पहुँच गए हैंहम सभी लोगसामूहिक रूप में जहां हम न खुद को सुरक्षित पा रहे हैं न अपने परिवार को। न अपने खुद के बारे में विश्वास के साथ कुछ कह पा रहे हैंन परिवार के बारे में। तो जिसे दिहाड़ी मजदूर कहते हैं वैसी जिंदगी गुजार रहे हैं। आज का दिन गुजर गया। बसअगला दिन कैसा होगा मालूम नहीं। अगला दिन भी गुजर जाएऐसा कुछ हो जाए तो चलो भगवान का भला अगला दिन भी निकल गया। ऐसे तो समाज नहीं चलता है। ऐसे तो समाज जीता भी नहीं है। इसीलिए हम जी नहीं पा रहे हैं। मुश्किल में पड़े हैं।

इतने सारे प्रतिद्वंद्वी खड़े कर लिए हैं हमने अपने अगल बगल कि लगता है कि हर समय कुरुक्षेत्र में ही खड़े हैं। कोई भी शांति के साथ जीवन का मजा नहीं ले रहा है। युद्ध कभी कभी होता है तो शायदअच्छा लग सकता है। लेकिन अगर २४ घंटे ही युद्ध होता रहे तो बोझ लगता हैमुश्किल हो जाती हैजीना कठिन हो जाता है।  अभी मैं भद्रक से आ रहा हूँओड़ीशा से। अभी १५-२० दिन पहले वहाँ एक बहुत बड़ा दंगा हुआ था वहाँ और तब से लगातार चल रहा है। वहाँ था मैं कुछ समय। कैसे शुरू हो गयाक्या बात हो गईकिसी नेजो एक नया संवाद का संसाधन निकला हैएस एम एसउसमें   सीता के बारे में थोड़ी गंदी सी बात लिख दी और उसके नीचे एक मुसलमान का नाम लिख दिया। यह बात फैली और वहाँ से विश्व हिन्दू परिषद ने इसे उठा लिया। इसके पहले कि यह समझ पाएँ कि यह सारा खेल क्या हुआ तब तक १५-२० मुसलमानो की दुकानों में आग लग गई। शाम को पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने सभा बुलाई और कहा कि मैंने इस आईडी की जांच कारवाई है। यह एक बिलकुल गलत और भ्रामक आईडी है। ऐसी कोई आईडी है नहीं जिससे यह निकला हो।  अत: यह किसी बदमाश की कार्यवाही है। लेकिन तब तक तो परिस्थिति बदमाशों के हाथों मे चली गई थी। बदमाशों की  संख्या दोनों तरफ ही बराबर है। रात को पत्थर बाजी हुई मुसलमानों की तरफ से।

जब कभी ऐसा होता है आप क्या करते होयह साधारण सी बात मन में आती  है कि वहाँ पहुँच तो जाएँ और फिर देखें क्या होता हैहम,  जो भी १५-२० व्यक्ति थे पहूँचे। और तब से इस कोशिश में लगे हैं कि कोई रास्ता निकले। कुछ तो समझ बने लोगों के मन में। मैं बराबर लोगों से पूछता हूँ कि ऐसे ही रहने का इरादा हो कि आप भी रहते हो हम भी रहते हैं और बीच में पुलिस छावनी रहनी चाहिए। अगर यह पसंद है तो रहा जाए। मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मैं तो कुछ दिनों में यहाँ से चला जाऊंगा। भुगतना तो आप लोगों को ही पड़ेगा। लेकिन अगर आपको लगता है कि यह रहने का तरीका नहीं है तब ये पुलिस छावनी आपके बीच से हटेइसकी कोशिश आपको ही करनी पड़ेगी। मैं इस छावनी को नहीं हटा सकता। पुलिस मेरी बात मानेगी भी नहीं क्योंकि उसे मालूम है कि खतरा दोनों तरफ से है।इसमें पहला कदम कौन पीछे खींचता है वही सबसे समझदार आदमी है। आपने नियम ही यह बना दिया है कि कदम पीछे खींचना कायरता है। जब तक आप कदाम पीछे नहीं खींचतेकदाम ऊठेंगे नहीं। यह आप देख रहे हो। फिरकोई तो निर्णय आपको करना पड़ेगा। 

जब मैं यह बात सोचता हूँ तो मेरे लिए हिन्दू मुसलमान जैसी कोई बात रहती ही नहीं है। मैं सोचता हूँ हिन्दू हो,मुसलमान होक्रिश्चियन होपारसी होअगर रहना है तो रहने के लिए कुछ मूलभूत नियम तो बनाने ही पड़ेंगे।  क्योंकि हम में से कोई भी यह निर्णय नहीं ले  सकता है कि आज से इस देश में कोई मुसलमान नहीं रहेगाऔर मुसलमान नहीं रहेंगे। वे तो हैं। हमारे आप के चाहने या न चाहने के बावजूद हैं। और उनके चाहनेन चाहने  के बावजूद हम हैं। तब कैसे रहोगेइसको सोचना शुरू करोगे तब हम वहीं पहुंचेगे जहां पाकिस्तान बनने के पहले महात्मा गांधी पहुंचे थे। तो मेरे लिए महात्मा गांधी भगवान नहीं हैं। मैं उनकी पूजा नहीं करता हूँ। मैं जिन सवालों से परेशान हूँ उनका समाधान ढूँढता हूँ तो इसी आदमी के पास पहूंचता हूँ। तब सोचता हूँ कि कोई तो बात है भाई। इस आदमी के जवाब खत्म नहीं होते हैं। बस इतनी सी ही बात है जो मुझे प्रेरित करती है।

गांधी जयंती -१५० वर्ष
इस वर्ष गांधी की १५०वीं जयंती प्रारम्भ हो रही है। क्या उनकी जयंती किसी अलग ढंग से मनाई जा सकती है?कोई रचनात्मक कार्यों की परिकल्पना कर सकते हैंऐसे कार्य की  परिकपल्पना जो एक दिन और वर्ष भर के लिए भी हो। और हम चला भी सकें। आपके सुझावों का हम आदर करेंगे।


                                                               क्या पढ़ें 
सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ समय पहले सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनजर देश की राष्ट्रीय सड़कों पर शराब की बिक्री पर रोक लगाई थी। न्यायालय के इस आदेश का पालन कैसे हुआ अपनी कमाई बनाए रखने के लिए सरकारें भी नियम कानून में छेद  ढूंढती हैं और अवशयकता पड़ने पर छेद करने में नहीं हिचकिचाती। अगर एक व्यापारी भी यही करता है और अपराधी है तब सरकार अपराधी क्यों नहीं?  पढ़ें – 
नशे की पोल लेखक चंद्रशेखरधर्माधिकारी। गांधी मार्ग अंक मई-जून २०१७ पृष्ठ ६०


पत्रिका के इसी अंक में एक और लेख पढ़ने योग्य है। मार्लो ब्रांडो होलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता थे। उन्हे ऑस्कर पुरस्कार से नवाजा गया था लेकिन उस पुरस्कार को लेने से इंकार कर दिया। ऑस्कर के मंच पर वे खुद उपस्थित नहीं थे। जब समारोह चल रहा था उस समय वे सुदूर वुंडेड नी में थे। समारोह में पढ़ने के लिए उन्होने आपना  व्याख्यान भेजा था। यह उसी व्याख्यान  के अंश हैं


पत्रिका
गांधी मार्ग”  - संपादक श्री कुमार प्रशांत
 पूरी पत्रिका में कोई विज्ञापन नहीं है। कोई ऐसा अंक नहीं जिसमें कम से कम एक निबंध  ऐसा न हो जो दिल को न छू ले और सोचने पर मजबूर न कर दे।

गाँधी मार्ग का मुख पृष्ट



मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

सूतांजली, अगस्त २०१७


सूतांजली                                     ०१/०१                                     ०१.०८.२०१७
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विज्ञान ने हमारे हाथ में एक ऐसा संसाधन पकड़ा दिया है जो हमारे लिए अनेक कार्य  करता रहता है, हम चाहें या न चाहें। इनमें से एक है हमारी बात दूसरों तक और दूसरों की  बात हमारे तक वक्त-बेवक्त पहुंचाते रहना। इनमें ज़्यादातर वे तमाम बाते रहती हैं जो हम नहीं चाहते लेकिन हमारे पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है। दूसरा रास्ता नहीं है।  अन्यथा हम अभी तक या तो इस सुविधा को  छोड़ चुके होते या ब्लॉक कर दिये होते या इसका प्रयोग नहीं करते। कितने लोगों ने ऐसा किया? कुछ लोगों की तो मजबूरी है। वे इसका प्रयोग करना जानते नहीं।  इसलिए इसका होना न होना उनके लिए बराबर है। अब, इससे आने और जाने वाली बातें दोनों प्रकार की हैं सकारात्मक और नकारात्मक। अच्छी बातें  या तो हम पढ़ते ही नहीं या फिर भुला देते हैं। बाकी बची बुरी बातें, उनसे होने वाली तबाही, तांडव और वैमनस्य तो हम प्राय: रोज ही सुन या पढ़ लेते हैं। सुतांजली ने सोचा कि इस आधुनिक  पद्धति को छोड़ हम  अपनी प्राचीन पद्धति को अपनाएं। देखें इसका क्या असर होता है? बातें इतनी ज्यादा न हो कि पढ़ी ही न जाय, इतनी कम भी नहीं  कि ध्यान  ही न जाए। और इस लिए प्रारम्भ हुई सुतांजली। । सूते को अंजली भर बांटना,  जिससे मनका मनका जोड़ कर माला पिरो सकें। यही है सूतांजली।  
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कोहरे से एक अच्छी बात सीखने मिलती है कि जब जीवन में रास्ता न दिखाई दे रहा हो तो बहुत दूर देखने की  कोशिश व्यर्थ है। एक एक कदम चलते चलो, रास्ता खुलता जाएगा ....
विश्वास किसी पर इतना करो कि वो तुम्हें छलते  समय खुद को दोषी समझे।
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                                                                                                         मैंने  पढ़ा

स्वच्छता की ओर एक  कदम
विदेशों में घूम कर आए भारतीय विदेशी स्वच्छता और देशी गंदगी की बहुत बात करते हैं। देश में फैली गंदगी को ध्यान में रखते हुवे सरकार ने स्वच्छता अभियानकी शुरुआत की और देश वासियों से सहयोग का अनुरोध भी किया। हमने सरकार के इस पहल पर टीका-टिप्पणी तो बहुत की लेकिन क्या कभी यह भी सोचा कि हमने इस ओर क्या कदम उठाया? 
(स्वदेश, इंदौर, २० फरवरी २०१७)



फरवरी के दूसरे सप्ताह में खानपाड़ा, गुवाहाटी में स्वच्छता पर आयोजित असम सम्मेलन के उदघाटन के अवसर पर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद-ए-मदनी ने कहा, “हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में शौचालय की शर्त को मुसलमानों की शादी के लिए अनिवार्य कर दिया गया है और जल्द ही देश के अन्य सभी राज्यों में लागू किया जाएगा।” मौलवियों और मुफ़्तियों ने फैसला किया है कि वे ऐसे मुस्लिम लड़कों का निकाह नहीं कराएंगे जिनके घरों में शौचालय नहीं है। पूर्व राज्य सभा सदस्य मदनी ने कहा कि उन्हे लगता है कि देश के सभी धर्मों  के धार्मिक नेताओं को भो ऐसा फैसला करना चाहिए।
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                                    मैंने सुना
मुझे गांधी क्यों प्रेरित करते हैं?     
       - कुमार प्रशांत
(१.५.१७भारतीय संस्कृति संसद अनौपचारिक विचार विमर्श)

कठिन काम  को करना आपकी हिम्मत का काम है। उसे करना एक चुनौती होती है। लेकिन एक असंभव कार्य को संभव बनाने का प्रयत्न करना आपकी मूर्खता का प्रमाण है। जो कार्य संभव नहीं है वह कार्य आप करने की कोशिश कर रहे हैं। यानिआप एक ऐसे समाज में सुख और शांति खोजने की कोशिश कर रहे हैं जिसका कोई भी सिरा सुख और शांति से जुड़ा हुआ नहीं है। उसमें आप एक कल्पना कर रहे हो कि कुछ तो ऐसा हो जाएगा कि आप एक अच्छा जीवन जीने लगेंगेएक शांति का जीवन व्यतीत करने लगेंगे। जिसको आनंद कहते हैंवह आनंद का जीवन मिल जाएग। मैं परेशान इस बात से हूँ।

यक्ष ने युधिष्टिर से पूछा कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? तो उसने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि हर आदमी यह जानता है कि उसका अंत होने वाला है लेकिन वह जीने की कोशिश में लगा है। यही दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है। कुछ इसी तरह का यह सवाल है कि आप जो भी चीज खोज रहे हो समाज में, चाहे जिस भी नाम से खोज रहे हो, चाहे जिन भी सवालों के द्वारा खोज रहे हो वह है नहीं और आप पाने की कोशिश में लगे हो। और बड़ी आशा से लगे हुवे हो। किसी को लगता है कि बहुत सा पैसा कमा लेंगे तो सुख मिल जाएगा। कुछ सोचते हैं कि बहुत सा ज्ञान कमा लें तो उसमें से कुछ निकल आयेगा। नये नये आविष्कार हो रहे हैं। नई-नई तरह-तरह की तकनीक सामने आ रही हैं वे हमारा काम बहुत आसान कर रही हैं। जिस काम के लिए बड़ी मशक्कत लगती थी वह काम अब बड़ी आसानी से हो रहा है। लेकिन जो हो रहा है उसमें से वह चीज नहीं निकल रही है जो हम चाहते थे। यह अपने आप में ही एक बड़े कौतुक का सवाल है। तब,  मेरी चिंता इस बात पर है कि यह बात कैसे समझी जाए और कैसे समझाई जाये? समझना एक चीज़ है और समझाना एक अलग चीज़ है। मैं एक बात कहता हूँ अपने साथियों से कि तुमने कोई बात समझ ली है”      इसकी कसौटी क्या है? “हाँ हाँ हम यह बात समझ गए हैं। गांधी का क्या विचार है हम समझ गए है।लेकिन आप समझ गए हैं इसकी कसौटी क्या है? इसकी एक बहुत साधारण सी कसौटी है। क्या  यह बात तुम दूसरे को समझा सकते हो? अगर तुम दूसरे को समझालोगे तो तुमने बात समझ ली है। और नहीं तो, एक गजल है:
कभी कभी हमने भी
ऐसे अपना दिल बहलाया है,
जिन बातों को हम खुद नहीं समझे
औरों को समझाया है।

ज्यादा कर हम ऐसी ही बाते करते हैं। ज़्यादातर हम उन बातों को समाज के नये नवजवानों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं जिनकी समझ  हमको ही नहीं होती है। एकहमारी भाषा भी काम नहीं करती है। दूसरेहमारे पास तथ्य नहीं है उन बातों को करने के लिए, हम उनकी भी बातें करते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जो बात तुम समझा रहे हो उसमें तुम्हारा खुद का विश्वास नहीं है। तो तुम्हारी बात तुरंत नकली हो जाती हैं।

ये सारी चीजें हैं जिनके बीच में से तुमको खोजना हैजिसे हम चाहते हैं। तो गांधी वान्धी को छोड़ कर अगर हम अपनी चिंता थोड़ी ज्यादा करने लगें तो शायद हम अपने  सवालों के जवाब के नजदीक पहुँच पायेंगे। क्योंकि एक बड़ा लंबा जीवन आप सब लोगों ने जीया है, अपनी अपनी तरह से। अपने अपने विचारअपने साधनअपना परिवार। इन सबों को देखते हुवे एक ऐसी जगह पहुँच गए हैंहम सभी लोगसामूहिक रूप में जहां हम न खुद को सुरक्षित पा रहे हैं न अपने परिवार को। न अपने खुद के बारे में विश्वास के साथ कुछ कह पा रहे हैंन परिवार के बारे में।
---- शेष अगले पत्र में     
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।


सूतांजली मई 2024

  गलत गलत है , भले ही उसे सब कर रहे हों।                     सही सही है , भले ही उसे कोई न कर रहा हो।                                 ...