बुधवार, 1 जुलाई 2020

सूतांजली, जुलाई 2020


सूतांजली                            ०३/१२                                                जुलाई २०२०
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“अविकसित”.......कौन?
(अग्निशिखा श्रीअरविंद सोसाइटी की मासिक पत्रिका है और वंदनाजी इसकी संपादिका हैं। इसी पत्रिका के फरवरी २०२० अंक से इसे लिया गया है। इसे क्या कहूँ; कहानी, लेख, संस्मरण या कुछ और। जो भी है, प्रस्तुत है आपके लिए, उसका संक्षिप्त रूप। वैसे अगर आप इसे पूरा पढ़ना चाहें तो वह भी आप यहाँ पढ़  (📖) सकते हैं।)

मेरे भाई केविन को पता है कि गिरिजाघर से कहीं ज्यादा भगवान उसकी खाट के नीचे बसते हैं।..... एक रात उसके कमरे के सामने से गुज़रते हुए मैंने उसे कहते सुना था, “लो यीशु, मैं आ गया सोने, तुम भी आ गये क्या अपने बिस्तर पर?”..... मेरी हल्की खिलखिलाहट फूट पड़ी थी, ..... मैंने दरार से झांक कर देखा, केविन पलंग के पास उकड़ूँ बैठा नीचे झांक रहा था, “थक गये क्या यीशु? क्या कहा, छुपा-छुप्पी खेल रहे थे? लेकिन पकड़ में तो आ जाते हो न रोज़ मेरी...”। ..... मेरे लिए तो सब शून्य ही शून्य था, लेकिन केविन तो रूबरू अपने प्रभु से बतिया रहा था, उन से हंसी मज़ाक कर रहा था, दिनचर्या का अपना हवाला दे रहा था... फिर “शुभ रात्रि” कह दोनों अपने-अपने बिस्तरों में दुबक गये थे...!!


केविन मेरा बड़ा भाई, तीन नहीं, बीस साल का बच्चा है। ..... मेरा भैया दुनिया की नज़रों में मानसिक रूप से अपंग है... लेकिन जब से मैं जिंदगी को समझने-परखने के काबिल हुई तब से मैं यही सोचा करती हूँ कि सचमुच अविकसित कौन है? मैं या दुनिया की नज़रों में मंद बुद्धि मेरा प्यारा –सा भाई?” .....

..... मैं कभी कभी उसके उस जगत में उसके साथ हो लेती हूँ तो मुझे अपनी यह दुनिया कितनी उबाऊ, चौकोर-चौकोर खंडों में बंटी हुई, दमघोटूँ, कैसी तो कतरी-ब्योंती सी लगती है, जब कि केविन का हाथ पकड़, उछल कर जब दहलीज़ पार कर उस तरफ पहुँच जाती हूँ तो खुले आसमान का नीला आँचल हम पर लहराता ही रहता है, वहाँ हर काम में हड़बड़ी मचाने के लिये न तो टिकटिक करती हैं घड़ी की सूइयाँ, न होती है आपा-धापी। वहाँ मुझे केविन के साथ-साथ वह सब दिखलाई देता है जो मैं कभी इस नीरस दुनिया में अकेले देख ही नहीं सकती। ..... क्रिसमस के आस-पास वह मुझे “सान्ता” दिखलाता है। ..... केविन के साथ-साथ मैंने क्या-क्या नहीं देखा?? ..... उस दुनिया में सब कुछ सुंदर था, सरल था, फूल-पत्ते, पशु-पक्षी, तितलियाँ-भौरें, चाँद-सितारे सब वहाँ सजीव हँसते-गाते, बतियाते-चहकते थे। न थी वहाँ कोई अनबन, न किसी भी तरह की सौदेबाजी। .....

..... हे भगवान! इस दुनिया की हर चीज पर “यह सही है”, “यह गलत है”, बस इन दोनों में से कोई एक बिल्ला क्यों टंका रहता है??? और केविन की दुनिया में? – वहाँ की हर चीज़ सही है, ..... क्योंकि हर एक चीज़ का रचयिता वह ईश्वर है, .....

..... वह भी इतवार के इंतजार में आँखें बिछाये रहता, .....कपड़े धोने की मशीन निहारने.....मशीन के अंदर नाचते कपड़ों को देख वह कभी उछल-उछल कर नाचता तो कभी कमरे में चक्करघिन्नियाँ काटता। ..... वह मुझसे कहा करता था, “रोज़ी, जानती है, ये कपड़े इसलिए खुश होकर नाचते हैं क्योंकि इन पर जमा मैल पानी में बह जाता है और ये साफ-सुथरे होकर बाहर आते हैं, वैसे ही जैसे जब हमारे अंदर दु:ख-दर्द का कोई मैल होता है तो भगवान के सामने आंसुओं में बह जाता है और फिर हम साफ हो जाते हैं।” हमारे घर में कितना बड़ा दार्शनिक उतर आया था मेरे भाई के रूप में, जिसे दुनिया बरबस तरस खाती थी और मैं भगवान को शुक्रिया अदा करते न थकती थी। .....थकान, असंतोष, खीज, क्रोध उसके पास फटकते ही नहीं, वह सारा दिन हँसता-खिलखिलाता, गुनगुनाता और मन-ही-मन ईश्वर से गपियाता। ..... मोची से लेकर कर्मशाला के निर्देशक – सबका वह दोस्त, ऊंच-नीच का उसे ज्ञान नहीं है और काम से कभी वह अपने हाथ नहीं खींचता .....   वह सचमुच कालातीत था, देशातीत था। ..... अपने प्यारे मौजी भैया के सामने आते ही मेरा सारा गुस्सा-खीज कपूर की तरह हवा हो जाते हैं! उसकी खुशी संक्रामक जो है.....

..... मैं जानती हूँ कि ..... जब तक ज़िंदगी की मेरी नौका उस पार के तट तक नहीं लगेगी, बीच-बीच में मेरी नाव ऊभ-चूभ करती रहेगी ..... लेकिन मेरा मासूम भाई, जो दुनिया की नज़रों में “अविकसित है, समय आने पर उस तट पर आसानी से पहुँच जाएगा  क्योंकि वह उन भगवान के साथ रोज़ रात को हंसता-बतियाता है जो उसकी खाट के नीचे बसते हैं। ..... वह तो अपने संग-संग धरती पर उस स्वर्ग का एक टुकड़ा जो उतार लाया है।
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प्रार्थना

“अगर चूल्हे पर सब कुछ डालकर खाना बनाना शुरू किया जाए तो खाना तो पकता ही है ..... लेकिन वह कितनी देर में पकेगा, यह चूल्हे की लौ पर निर्भर करता है। जितनी तेज लौ होगी, खाना उतनी ही जल्दी बनता है”।
“सूखे से ग्रस्त गाँववाले, मंदिर में, ईश्वर से वर्षा की सामूहिक प्रार्थना करने जमा हुए। लेकिन छाता लेकर तो केवल एक बच्चा ही आया था”।
 “आप मांगों, ईश्वर आपको देगा। आप खोजना शुरू करो, ईश्वर उसका पता देगा। आप खटखटाओ, ईश्वर आपके लिए द्वार खोल देगा”।
श्री अरविंद को श्री कृष्ण के दर्शन हुए। उन्हे पांडिचेरी जाने का निर्देश मिला। श्री रामकृष्ण परमहंस माँ काली से वार्तालाप करते थे। कठिन समय में महात्मा गांधी को ईश्वर से दिशा निर्देश मिलते थे। आज के युग के अनेक पुरुषों के साथ ऐसी अनेक घटनाएँ घटीं हैं। 

किसी कि प्रार्थना सुनी गई, किसी की नहीं। किसी की प्रार्थना तुरंत सुनी गई तो किसी को फल प्राप्ति में समय लगा। किसी ने धैर्य खो दिया तो किसी ने इंतजार किया। किसी ने पूरे मनोयोग से मांगा तो किसी ने आधे-अधूरे मन से। परीक्षा में सर्वोत्तम अंक पाने के लिए प्रार्थनाएँ तो बहुत कीं लेकिन उसके साथ समीचीन तैयारी नहीं की। जब हम परीक्षा के लिए पूरी तैयारी के साथ नहीं बैठे तब हम सर्वोत्तम अंक प्राप्ति की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? जब हम अपने हिस्से का काम नहीं करते तो प्रभु से मदद की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। हमारी प्रार्थना का उत्तर देने के पहले प्रभु यह भी देखता है कि जिस समस्या के लिए हम प्रार्थना कर रहे हैं क्या हम खुद उसे सुलझा सकते हैं? ईश्वर हमसे कर्म की अपेक्षा रखता है। और जब हम पूरे मनोयोग से कर्म करते हैं तो वह एक मददगार के रूप में हमें तकलीफ़ों से निकाल लेता है। वह हमारी समस्याओं को सुलझाने के लिए रास्ता दिखाता है, अंधेरे से प्रकाश की तरफ जाने का रास्ता दिखाता है, तरीका बताता है। वह खुद चल कर हमारे पास नहीं आता लेकिन हमारी तकलीफ़ों को समाप्त करने का रास्ता दिखाता है। उस रास्ते पर चलने का कर्म तो हमें ही करना होता है।

गाँव के एक पुजारी ईश्वर भक्त थे। एक बार गाँव में भीषण बाढ़ आई। सबों को गाँव खाली कर सुरक्षित जगह पर जाने के लिए कहा गया। लेकिन पुजारी ने जाने से मना कर दिया, कहा  तुमलोग जाओ, मेरा ईश्वर पर विश्वास है, वह बचाएगा। गाँव में पानी भरने लगा। कुछ लोग मोटर-साइकिल पर पुजारी को निकालने आये। लेकिन उन्होने फिर मना कर दिया और कहा,  तुमलोग जाओ मेरा ईश्वर पर विश्वास है, वह बचाएगा। पानी और बढ़ गया, रास्ते डूब गए। इस बार कुछ लोग नौका लेकर आए। लेकिन पुजारी ने फिर वही बात दोहरा दी। पानी और बढ़ गया। बहाव तेज हो गया। नौका का आना संभव नहीं रहा। अब हेलीकाप्टर से लोग आए और पुजारी को वहाँ से हटाना चाहे। लेकिन उसने फिर वही बात दोहरा दी। आखिर पूरा गाँव, मंदिर के साथ पुजारी भी डूब गया। जब पुजारी ईश्वर के पास पहुंचा, उसने शिकायत की, मेरा तुम पर से विश्वास उठ गया। मैंने तुम पर इतना भरोसा किया, लेकिन तुम मुझे बचाने नहीं आए। ईश्वर ने कहा, मैंने तो सहायता भेजी थी, लोगों को पैदल, मोटर साइकल, नौका, हेलीकाप्टर पर तुम्हें निकालने के लिए लेकिन तुमने हर बार मना कर दिया। मैं क्या करता’?

जब हम ईश्वर से मदद मांगते हैं तब हमें मदद पाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। अगर हम चाहते हैं कि ईश्वर हमारी प्रार्थना सुन ले तब हमें भी अपनी तरफ से पूरा प्रयास करना चाहिए और ईश्वर प्रदत्त सहायता को समझ कर स्वीकार भी करना चाहिए। हम यह मानते हैं कि ईश्वर हमारी फरियाद तुरंत सुनेगें। लेकिन वह हमारी फरियाद तभी सुनता है जब वह यह समझता है कि उसे तुरंत सुनना है। अपनी फरियाद हकीकत के तराजू पर भी तौलनी चाहिए। अगर हमारी मांग इस संभावना के अंदर हो तो मांग के मंजूर होने की संभावना भी बढ़ जाती है। प्राय: मांगे, तकलीफ दूर करने की नहीं होती, बल्कि संसार की दौड़ में आगे बढ़ने की होती है। मांगों में काम-क्रोध-लोभ-मोह का समावेश होता है। मांगों की फेहरिस्त (लिस्ट) लंबी होती है। ऐसी मांगे ईश्वर कैसे सुन सकता है? ऐसे ही लोग यह कहते पाये जाते हैं, ईश्वर हमारी बात नहीं सुनता
   
जितनी बड़ी मांग, उतनी गहरी प्रार्थना। बड़े कार्य के लिए बड़ा निवेश। अर्थशास्त्र का यह एक साधारण सा नियम है। वैसे ही प्रार्थना के साथ कर्म का निवेश भी आवश्यक है। ज्यादा लाभ के लिए, ज्यादा पूंजी। जितना कर्म, उतना फल। धर्म-संप्रदाय के मुताबिक प्रार्थना के तरीके भले ही अलग अलग हों लेकिन सब के मूल में भावना समान ही होती है। कर्म के निवेश के साथ स्वार्थ रहित प्रार्थना सर्वश्रेष्ठ होती है।

प्रार्थना की फेहरिस्त छोटी करें। समुचित कर्म का निवेश करें। स्व को हटा कर सर्व का समावेश करें। विश्वास और धैर्य रखें आपको अनुभव होगा ‘ईश्वर आपकी बात सुनता है’। ज़िंदगी कितनी लंबी है, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह भी नहीं है कि हमने कितना नाम, मान,  ऐश्वर्य और समृद्धि कमाई। खास बात यह है कि कैसे जी हमने यह ज़िंदगी?
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पाठकों से: –
हमें अनेक पाठकों से  सकारात्मक टिप्पणियाँ मिल रही हैं। उत्साहवर्द्धन के लिये सब पाठकों का हार्दिक आभार। आप से अनुरोध है कि आपने कहीं भी सकारात्मक, प्रेरणादायक, सृजनात्मक या भारतीय संस्कृति से संबन्धित कुछ नया सुना, पढ़ा, देखा या ख्याल आया तो हमें भेजें। हमारी कोशिश रहेगी कि हम, उसे, आपके नाम से, अपने पाठकों तक पहुंचाएँ।
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सूतांजली मई 2024

  गलत गलत है , भले ही उसे सब कर रहे हों।                     सही सही है , भले ही उसे कोई न कर रहा हो।                                 ...