बुधवार, 1 अप्रैल 2020

सूतांजली, अप्रैल 2020


सूतांजली                    ०३/०९                                          अप्रैल २०२०              ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कोरोना, एक उज्ज्वल भविष्य की ओर?
विश्व एक अप्रत्याशित महामारी की चपेट में है। हर देश इससे जूझने के लिए प्रयत्नशील है और हर संभव प्रयास में लगा है। दुनिया के समस्त वैज्ञानिक, शोधकर्ता, वैकल्पिक चिकित्सा के जानकार इससे छुटकारा पाने के उपाय ढूँढने में व्यस्त हैं। बहुत से लोग डरे हुए हैं, कुछ आशावान हैं। किसी के अनुसार यह हमारी करनी का फल है तो किसी का मानना है कि प्रकृति संतुलन बनाने में लगी है। ऐसे समय में हमारा यह उत्तरदायित्व भी बनता है और कर्तव्य भी कि हम अपनी सरकार और प्रशासन का साथ दें, उनके लिए मुसीबत खड़ी न करें। वरिष्ठ लोगों की, गरीब जनता की, सेवा कार्य से जुड़े कर्मियों की यथा शक्ति सहायता करें। इस संकट के समय मुनाफाखोरी, जमाखोरी और बेईमानी से दूर रह कर इंसानियत का रास्ता अपनाएं। सुख और प्रसन्नता अपने लिए कैद करने से बचें, इन्हे मुक्तहस्त बांटे

इस दुर्दिन के समय हम एक नई दुनिया भी देख, सुन और अनुभव कर रहे हैं। शायद अब, दुनिया वैसी नहीं रहे जैसी थी। लेकिन यह विश्वास रखना चाहिए कि जैसी भी होगी अभी से बेहतर होगी। हमारा यह विश्वास ही हमें एक बेहतर दुनिया दे सकेगा। साकार वही होगा, जो हम देखेंगे। संकट के समय अपना संतुलन न खोएँ, हताश न होएं, दुखी न होएं, चिंता न करें। खुला आसमान देखें, चिड़ियों का चहकना सुनें, परिचितों से दिल खोल  कर बातें करें, जिन्हें भूल गए थे उन्हें याद करें। हम अनुभव कर रहे हैं कि वातावरण शुद्ध हो रहा है, प्रदूषण कम हो रहा है। हमें क्षितिज पर काली रेखा नहीं दिख रही है। ओज़ोन लेयर की मरम्मत हो रही है। हमारे पास हमारे परिवार के लिए समय है। हमारे पास अपने लिए समय है। नई दुनिया, हमें इनसे कोसों दूर ले आई थी। हम परिवार को, मित्रों को, प्रकृति को, भूल गए थे। अब तो बस फिर से उन्हे याद करना सीख रहे हैं, उन्हे देखना सीख रह हैं, उन्हे सुनना सीख रहे हैं। ज़िंदगी की आपाधापी में हमारे आँख, कान, नाक, बंद हो गए थे अब खुल रहे हैं।

मैंने लोगों से पूछा, उनका क्या मानना है, “क्या दुनिया बदल जाएगी? कैसी होगी वह नई दुनिया”? लोगों की मिश्रित प्रतिक्रिया रही। कइयों का मानना है कि आदमी बदलने वाला नहीं। जैसा है, वैसा ही रहेगा। वहीं  बहुतों का मानना है कि बदलाव तो आयेगा ही। कितना आयेगा और कितनी अवधि तक रहेगा यह तो भविष्य ही बताएगा।  दिक्कत यह है कि बुरे, अच्छों को देख, बुराई छोड़ अच्छे नहीं बनते। लेकिन अच्छे, बुरों को देख, अच्छाई छोड़ बुरे हो जाते हैं। राजीव, कोलकाता, ने कहा ब्रह्मांड प्रकृति द्वारा बनाए गए संयम और अनुशासन के नियम पर चलता है। हमें ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। नेहा, मुम्बई  ने लिखा बिना भविष्य की चिंता किए मैं यह विश्वास करती हूँ कि जो भी होगा अच्छा होगा। मुझे यह विश्वास है कि मैं अकेली नहीं हूँ। मुझे यह विश्वास है कि हमारे पास संसाधनों का अजस्र स्त्रोत है। मैं शांति में विश्वास रखती हूँ। मैं इंतजार करने में विश्वास रखती हूँ। मैं बिना अपने प्रश्नों के उत्तर पाये जीना सीख रही हूँ। प्रोफेसर मदन मोहन, मुंबई,  ने भी लिखा हम शुभ के कवच में हैं, विश्वास रखें। लेकिन तूलिका, सिडनी,  का मानना है कि कुछ नहीं  बदलेगा क्योंकि इंसान को भूलने की बड़ी अच्छी आदत है। राजनीतिक लोग तोड़-मरोड़ कर इसका फायदा उठाना शुरू कर देंगे तथा प्रकृति की बर्बादी फिर से शुरू हो जाएगी। कमलजी, कोलकाता,  का भी यही मानना है। पीयूष, पाली,   ने लिखा मानव को इस बात का घमंड था कि वह ब्रह्मांड का सबसे ताकतवर प्राणी है। प्रकृति ने एक नजर न आने वाले वायरस से डरा कर सारी दुनिया को कैद में कर लिया है। हम जो कार्य रोज करते थे, हमारे लिए महत्वपूर्ण थे वे सब अनिश्चितकाल के लिए टल गए। हमारी प्राथमिकताएं मिनटों में बदल गईं। अगर हम इसे समझ कर प्रकृति से ताल-मेल बैठा कर चलते हैं तब तो ठीक है वरना इसकी कीमत हमें चुकानी पड़ेगी। उनका विश्वास है कि मानव की आँखें खुल जाएंगी और अब वह सँभल कर चलेगा। सुनीता, दिल्ली,  का मानना है कि सीमित लोगों में ही बदलाव आयेगा। लोग और-और की अन्धाधुंद  दौड़ में लगे हैं। नर नारायण जी, कोलकाता,  का सुझाव है कि विश्व के नेता अपने अनुभव साझा कर एक वैश्विक नियमावली बनाएँ, इससे बचने और इसे रोकने के लिए।  श्रीकिशनजी, दिल्ली,  ने कहा कि बदलाव होते रहना एक शाश्वत सत्य है। देवता और दानव दोनों सृष्टि के आरंभ से ही हैं। ताकत, किसी भी पक्ष में, कम या ज्यादा होना लगा रहता है। अब हम आध्यात्मिक से भौतिक अधिक हो गए हैं। संस्कारों को नष्ट कर चाँद–मंगल पर जाना प्रगति की निशानी बन गई है। हमारी प्रगति के मापदंड अध्यात्म के बदले भौतिक हो गए हैं। प्रगति के मापदण्डों को, कसौटियों को सुधारना होगा। ओम प्रकाश जी, कोलकाता, कहते हैं कि अशिक्षा और मजहबी मानसिकता को छोड़ कर अनुशासन में जीना सीखना होगा। सुंदरजी, कोलकाता,  ने लिखा बदलना प्रकृति का मौलिक स्वभाव है। जैसे मानवों का बाहुल्य होगा, दुनिया भी वैसी ही बनेगी। सुधरना बहुत जरूरी है, निरंतर और सबों को, तभी एक सुंदर दुनिया का निर्माण संभव है । अदितिजी, कोलकाता,  लिखती हैं कि लंबे समय को ध्यान में रखें तो कोई बदलाव नहीं आयेगा। क्योंकि हमारी मानसिकता और सोच संकुचित हो चुकी है। शिव कुमारजी, कोलकाता,  ने लिखा कि जब तक मानव अपने आचार-विचार नहीं बदलेगा कोई परिवर्तन नहीं होगा। प्रमिलाजी , कोलकाता, ने एक शायरी साझा की -

रफ्तार कम करो बचेंगे तो  मिलेंगे, गुलशन न रहेगा तो कहाँ फूल खिलेंगे?
वीरानगी में रह कर खुद से भी मिलेंगे, रह जाएँ सलामत तो गुल खुशियों के खिलेंगे।
अब वक्त आ गया है कायनात का सोचो, ये रूठ गई गर तो ये मौके नहीं मिलेंगे।
जो हो रहा है समझो क्यों हो रहा है, कुदरत के बदन को अब और कितना छिलेंगे।
मौका है अभी देख लो फिर देर ना हो जाए, जो कुदरत को दिये जख्म वो हम कैसे सिलेंगे।
है कोई तो जिसने जहां हिला के रख दिया, लगता था कि हमारे बिना पत्ते ना हिलेंगे।
झाँको दिलों के अंदर क्या करना है सोचो, खाक में वर्ना हम सभी जा के मिलेंगे।

राजेश, कोलकाता, आशावादी हैं और उन्होने बहुत अच्छी बात लिखी। वे लिखते हैं कि जब जिंदगी हमारे कथानक के अनुसार नहीं चल रही है तो यह समझना चाहिए कि अब कथा ऊपर वाले की चल रही है। और उसकी कथा हमारे लिखे कथानक से अच्छी होती है, अत: जो भी होगा अच्छा ही होगा। बनेचन्दजी, कोलकाता,  ने लिखा कि दुनिया सृष्टि के समय से ही बदलती रही है। एक साथ आमूलचूल परिवर्तन नहीं होता। हाँ, वर्तमान झटका बड़ा और अप्रत्याशित है, लेकिन दुनिया फिर अपनी पटरी पर आ जाएगी और बदलाव प्रकृति के नियमों के अनुसार ही होगा। सुधाजी, कोलकाता,  ने लिखा हमें लगता है कि दुनिया बदल रही है या हम दुनिया को बदल रहे हैं। जैसी हमारी सोच होगी वैसी दुनिया होगीमंजू, कोलकाता,  का मानना है कि कुछ बदलाव तो जरूर आयेगा लेकिन कमोबेश दुनिया वैसी ही चलती रहेगी। 

मुझे श्री अरविंद की बात याद आ रही है आज, कल से अच्छा है और कल, आज से अच्छा होगा। हम निरंतर प्रगति कर रहे हैं। हम इस प्रगति को नहीं रोक सकते हैं। यह प्रकृति प्रदत्त है। हाँ, हम अपने प्रयासों और कार्यों से इस प्रगति की गति को धीमा और तेज कर सकते हैं। हमारे वश में सिर्फ इतना ही है

अरुणजी , कोलकाता, ने वैचारिक विज्ञान का सहारा लेते हुए सबों के लिए एक मंत्र दिया है, जिससे हम इस प्रगति की गति को तेज कर सकें। वे चाहते हैं कि हम सभी रात सोने के पहले एक दृश्य आँखों के सामने लाएँ – “हम सब का जीवन पहले जैसा ठीक है, सब खुश हैं, कोरोना समाप्त हो गया है, हम सब उत्सव मना रहे हैं, बच्चे स्कूल जा रहे हैं, परिवार के हर एक लोग स्वस्थ्य हैं, पूरा समाज ठीक है, पूरा शहर व्यवस्थित है, पूरा देश सामान्य हो गया है, हवाई जहाज उड़ रहे हैं, गाड़ियाँ चल रही हैं, जीवन सामान्य हो गया है”। ये सब देखते हुए बिलकुल खुशी और रोमांच से भर जाएँ, होने वाली खुशी का अभी अनुभव करें। हाँ ऐसा वास्तव में सोचना और करना जरूरी है। हमारे सपने साकार हो जाएंगे। हम सब मिलकर, जो हमारे वश में है उसे करें, प्रगति की गति को तेज करें।
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हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहता है। - महेश

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सूतांजली मई 2024

  गलत गलत है , भले ही उसे सब कर रहे हों।                     सही सही है , भले ही उसे कोई न कर रहा हो।                                 ...