सूतांजली ०२/०६ जनवरी २०१९
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सब कराया धराया मोहन का
कल
रात मोहन मुझसे मिलने आए। मैं आश्चर्यचकित रह गया और बड़ी हैरानी से बोला बापू मुझे
बुला लिया होता। इस सर्दी में आप यहाँ चले आए बिना कोई खबर किए, वो भी एकदम अकेले। बापू ने अपनी चिरपरिचित मुस्कुराहट बिखेरी। उनके हाथ
में वही एक डंडा, आँखों पर गोल चश्मा,
बदन पर आधी धोती और एक सफ़ेद चद्दर। मुस्कुराते
हुए बैठ गए। और बोलने लगे- “कई दिनों से तुमसे मिलने की इच्छा हो रही थी, लेकिन टालता जा रहा था। आज रहा नहीं गया तो सोचा अभी ही चलूँ नहीं तो फिर
टाल दूँगा”। मैं सोचने लगा कि मोहन को मुझसे इतना क्या आवश्यक काम आन पड़ा कि इस
प्रकार अकेले, देर रात मिलने चले आए? वे बोलते रहे, “मैंने क्या किया, क्या नहीं, यह सबको पता हैं। मैंने कभी कुछ भी नहीं
छिपाया। मैं यही कहता रहा कि मेरा जीवन एक खुली किताब है, जो
चाहे पढ़े। मेरा जीवन ही मेरा संदेश है”।
मैंने
उन्हे बीच में टोका, “बापू, आप हर समस्या की जड़ तक
जाते थे और दूर की सोचते थे.....”
इस
बार उन्होने मुझे बीच में टोकते हुए बात आगे बढ़ाई, “मैंने जो सोचा वह तो सबों को पता है, लेकिन क्या
तुम्हें यह भी पता है कि मैंने जो नहीं किया वह भी मेरे नाम,
जिसका मैंने विरोध क्या वह भी मेरे ही नाम और जो नहीं सोचा वह भी औरों ने सोचकर मेरे
ही नाम कर दिया है? लेकिन मैंने देश के लिए जो एक सबसे बड़ा काम किया इसके बारे में किसी ने भी आज तक
कोई चर्चा नहीं की? दरअसल मुझे भी यह पता नहीं था कि मैं इतना बड़ा काम कर रहा हूँ।
इसका एहसास मुझे अभी कुछ ही दिनों से हो रहा है”। मेरी आंखे आश्चर्य से फैल गई।
बापू
ने आगे पूछा, “अच्छा बताओ, अगर तुम्हें आज
खाना पसंद नहीं आया तो उसके लिए दोषी कौन”?
“मेरी
पत्नी, क्योंकि उसीने खाना बनाया”।
“लेकिन
पत्नी ने क्या कहा”?
“उसने
मुझे ही दोषी ठहराया और कहा मैंने सब्जी अच्छी नहीं लाई थी”।
“बिलकुल
ठीक। अच्छा बताओ, आज ऑफिस में जिस कार्य की चर्चा हो रही थी वह
तुम्हारी कंपनी को क्यों नहीं मिला”?
“मैं
क्या करता उस खन्ना ने मुझे गलत आंकड़े दिये”?
“तुम
सीए (CA) क्यों नहीं बन पाये?” बापू ने अगला सवाल जड़ा।
“बापू!”, मैंने खीजते हुए कहा, “यह तो आपको भी पता है कि उस
वर्ष इंस्टीट्यूट ने अचानक ही पूरे पेपर का डर्रा ही बदल दिया था। केवल मैं ही
नहीं उस वर्ष तो गिने चुने ही लोग परीक्षा पास कर सके थे”।
“हाँ!
हाँ! मुझे पता है। तुमने कभी कोई गलती नहीं की। सब गलतियाँ दूसरों की ही थी। तुम
तो पाक साफ थे और बहुत काबिल भी। अगर दूसरों ने तुम्हारे रास्ते में रोड़े नहीं
अटकाए होते तो तुम्हारी ज़िंदगी ही कुछ और होती। तुम में असाधारण काबिलियत थी, दुनिया ही नहीं पहचान सकी, तुम्हारा कोई दोष नहीं
था”। बापू के व्यंग को मैं समझ नहीं सका।
बापू
ने बात कहा, “अगर मैं नहीं होता तो देश की जनता का क्या होता? वे सब कारगुजारियों और ना-कारगुजारियों
का दोष मंढ़ने के लिए के लिए एक व्यक्ति कहाँ से लाती? उन्हे मुझ में वे सब अवगुण दिखे और सब कुछ के लिए मुझे रेखांकित कर
निश्चिंत हो गए। आजादी के पहले और आजादी के बाद भी सब बुराइयों का जिम्मेदार उन्हे
एक ही व्यक्ति, मुझ में दिख गया। पटेल के बदले नेहरू को
प्रधान मंत्री बना कर देश का सत्यानाश मैंने किया! नेहरू ने क्या किया या नहीं किया
उसके लिए मैं जिम्मेदार लेकिन यह किसी को पता नहीं कि 1963 में नेहरू ने स्वीकार किया कि मेरी सलाह न मानकर
उसने बड़ी भूल की, भारत के लिए मेरा सुझाया मार्ग ही सही था लेकिन अब
नेहरू को वापस लौटने का मार्ग नहीं सूझ रहा था और कोई बताने वाला भी नहीं था। किसी
को यह याद नहीं कि मैंने कहा कि नेहरू को मैंने मेरा उत्तराधिकारी बनाया जरूर है
लेकिन मेरे और नेहरू का भारत अलग अलग है। मैंने बताया कि मैं अंग्रेजों को स्वीकार
करता हूँ अंग्रेज़ियत को नहीं लेकिन नेहरू को अंग्रेज़ियत स्वीकार है अंग्रेज़ नहीं। प्रधान
मंत्री बनने पर नेहरू ने क्या किया यह सबों को पता हो या न हो, लेकिन पटेल अगर प्रधान मंत्री बनते तो क्या होता यह देश का बच्चा बच्चा जानता
है। भारत में हिंदुओं को मैंने मरवाया और मुसलमानों को मैंने ही बचाया! उधर पाकिस्तान का मानना है कि भारत में मैंने हिंदुओं को बचाया और
मुसलमानों को मरवाया। दलितों और अछूतों का
उद्धार करने में रोड़े भी मैंने ही अटकाए!
मेरे ही कारण आरक्षण लागू हुआ और मेरे ही कारण भाषा की समस्या खड़ी हुई।
मेरे ही कारण फिरोज को गांधी का नाम मिला जिसके कारण नेहरू परिवार ने परिवारवाद की
नींव डाली! देश में अशिक्षा, भुखमरी और बेरोजगारी के लिए भी
मैं ही ज़िम्मेवार हूँ! चंपारण में मैंने ही किसानों को बरगलाया और किसानों के बदले
जमींदारों का पक्ष लिया! देश का बंटवारा भी मेरे ही कारण हुआ! मैं नहीं होता तो आजादी कई वर्षों पहले मिल गई होती और
वह ज्यादा खूबसूरत होती। और तो और खुले आम व्यभिचार को बढ़ावा भी मैंने ही दिया! हड़ताल, घेराव, अनशन भी मैंने ही सिखाया जिसके
कारण देश का अनगणित नुकसान हुआ! मैंने खड्डा इतना गहरा खोदा कि आजादी के
सत्तर साल बाद भी भारत की जनता, नेता, मंत्री, प्रशासक, व्यवसायी, उद्धोगपति, बुद्धिजीवी, युवा, बूढ़े, जवान, स्त्री-पुरुष, हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, पारसी सब मिलकर भी आज तक नहीं भर पाये। देश की सब समस्याओं की जड़ एक ही
है – गांधी, अगर मैं नहीं होता तो देश में इतनी समस्या ........
अब
बापू की आवाज मेरे कानों तक नहीं पहुँच रही थी। मैं अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया
घूमने लगा। हमारे बच्चे वहाँ रहते हैं। हम जब भी वहाँ गए हमने देखा घर की सफाई, कपड़ा धुलाई, रसोई पकाना,
बाजार करना दोनों पति-पत्नी मिल करते हैं। हमने भी उनका साथ दिया। जब वे भारत आए
तो सोचा उन्हे तो काम की आदत है और यहाँ भी वे सब यंत्र मौजूद हैं अत: कोई विशेष
व्यवस्था नहीं की। जब बेटे-बहू को पता चला तो नि:श्वास छोड़ते हुए यही तो कहा था, “मजबूरी का नाम महात्मा गांधी”!
तभी
किसी ने मेरी रिजाई खिसकाई और एक आवाज कानों में पड़ी, “नींद में क्या बड़बड़ा रहे हैं? आज घूमने नहीं जाना
है?”
मैंने
वापस रिजाई खींची और बड़बड़ाया, “नहीं जाना।
कितना बढ़िया सपना आ रहा था तोड़ दिया।”
मेरे
कानों ने अब सुना, “हे भगवन! लगता है अब इनको सपने में भी वही गांधी दिखने
लगा है!”
मैं
एक झटके से उठा और सुबह की सैर को निकल पड़ा। लेकिन दिमाग था कि पीछा नहीं छोड़ रहा
था। दूसरों की आलोचना करना और उनपर दोष मढ़
देना आसान है और अपनी तदबीरों की नाकामयाबी के लिए कोई-न-कोई बहाना ढूँढने
के लिए तो दूसरों के सिर कसूर थोपने के लालच को रोकना अक्सर दुश्वार ही हो जाता
है। हम कहते हैं कसूर हमारे खयाल का या काम में किसी किस्म की गलती का थोड़े ही था, वह तो दूसरों ने जो रोड़े अटकाए, उनका था। हम हर
किसी के लिए दूसरे को दोष दे देते हैं, सिर्फ अपने आप को छोड़
कर। राजनीतिक आजादी के बाद हम देश को सामाजिक और आर्थिक आजादी दिलाने में नाकामयाब
रहे। और अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को दोषी बनाते रहे। वही ‘दशम न्याय’ का सिद्धान्त अपने को छोड़ कर बाकी सबों को गिनना ।