गुरुवार, 1 फ़रवरी 2024

सूतांजली फ़रवरी 2024


 

संत इसलिए संत नहीं कि उनमें कोई बुराई  नहीं है,

बल्कि इसलिए है कि वे अपनी बुराइयों को जानते हैं,

उनसे बचना चाहते हैं, उन्हें छिपाते नहीं और उनसे मुक्त होकर

अच्छे बनने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

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आत्मीय अहसास

 

श्री राम लक्ष्मण एवम् सीता मैया चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, राह बहुत पथरीली और कंटीली थी कि यकायक श्री राम के चरणों में कांटा चुभ गया। श्री राम रुष्ट या क्रोधित नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे। बोले - माँ, मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे, क्या आप स्वीकार करेंगी। धरती बोली - प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए।

          प्रभु बोले, माँ मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज में इस पथ से गुजरे, तो आप नरम हो जाना! कुछ पल के लिए। अपने आँचल के ये पत्थर और कांटा मेरे पैर में चुभा सो चुभा पर मेरे भारत के पाँव में आघात मत करना। श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई। पूछा - भगवान, धृष्टता क्षमा करें। पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है? जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गये तो क्या कुमार भरत सहन नहीं कर पायेगें? फिर उनको लेकर आपके चित्त में इतनी व्याकुलता क्यों?

          श्री राम बोले – नहीं....,  नहीं माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नहीं समझीं भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नहीं उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा। हृदय विदीर्ण !! ऐसा क्यों प्रभु,  धरती माँ जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं।

          अपनी पीड़ा से नहीं माँ बल्कि यह सोचकर कि ... इसी कंटीली राह से मेरे भैया राम गुजरे होंगे और ये शूल उनके पगों में भी चुभे होंगे। मैया, मेरा भरत कल्पना में भी मेरी पीड़ा सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति में आप कमल पंखुड़ियों सी कोमल बन जाना।

         अर्थात रिश्ते, अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं। जहाँ गहरी आत्मीयता नहीं, वह शायद रिश्ता नहीं परंतु दिखावा हो सकता है। इसीलिए कहा गया है कि रिश्ते खून से नहीं, परिवार से नहीं, मित्रता से नहीं, व्यवहार से नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ आत्मीय एहसास से ही बनते और निर्वहन किए जाते हैं। जहाँ एहसास ही नहीं, वहाँ अपनापन कहाँ से आएगा

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भारतीय सभ्यता-संस्कृति एवं श्री राम                                     

          यह पृथ्वी कब बनी थी? मानव सभ्यता का उदय कब हुआ? यह अभी भी विद्वानों के लिए शोध का विषय है। लेकिन जब मानव सभ्यता का अस्तित्व शुरू हुआ तो उसमें कई संस्कृतियों, सभ्यताओं और साम्राज्यों का उदय हुआ और समय के साथ कई संस्कृतियों, सभ्यताओं और साम्राज्यों का अस्तित्व समाप्त भी हो गया जैसे ग्रीक, मिस्र, रोमन, मंगोलियाई, फारसी आदिइस्लाम ने 621 ईस्वी में मिस्र पर, अरब शासक और खलीफा मोहम्मद उमर के नेतृत्व के तहत आक्रमण किया642 ईस्वी, यानी महज 21 वर्षों में उन्होंने वहां की संस्कृति और सभ्यता को नष्ट कर दिया और उसे इस्लाम में परिवर्तित कर दियाइस्लाम ने 635 ईस्वी में मोहम्मद उमर के नेतृत्व में ईरान और इराक पर आक्रमण किया और 650 ईस्वी में ईरान और इराक के खलीफा सुलेमान ने 652 ईस्वी यानी महज 17 वर्षों में उन्हें एक इस्लामी राज्य बना दिया329 ई. में रोम के सम्राट कॉन्सटेंटाइन अपनी मां के साथ यरुशलम आए और वहां उन्होंने ईसाई धर्म की दीक्षा ली। फिर, उनके प्रयासों से 50 वर्षों के भीतर, संपूर्ण यूरोप को ईसाई बना दिया।

          भारतीय संस्कृति, सभ्यता राष्ट्रवाद को मिटाने की दृष्टि से विदेशियों ने उपमहाद्वीप पर 13 बार आक्रमण किया :

1.    460 ईसा पूर्व में फारसियों ने,

2.    327 ई.पू. सिकंदर ने,

3.    100 ई.पू. में कुषाण ने,

4.    79 ई. में शकों ने,

5.    535 ई. में हूणों ने,

6.    650 ई. में अरब ने आक्रमण किया।

इन 6 आक्रमणों में हमारी संस्कृति, सभ्यता और देश की सीमाओं की रक्षा हुई, फिर

7.    712 में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला किया वहां भारतीय शासक आपसी विभाजन और गुटबाजी के कारण हार गई थी।

8.    1026 ई. में महमूद गजनवी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कियाज्योतिष के भ्रम और शिवदर्शी नामक पंडित के चंगुल में फंस कर भारत हार गया था।

9.    मोहम्मद गौरी ने 1192 ई. में हमला किया थाभारत के सात राज्यों ने गौरी का समर्थन किया और सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हार हुई

10.  1526 में, बाबर ने भारत पर आक्रमण किया और मुगल साम्राज्य की नींव रखी

11.  पुर्तगाली 1498 ई. में भारत आए और 1509 में दीव और 1510 में गोवा पर अधिकार कर लिया 

12.  5-6 सितंबर 1746 को फ्रांस ने मद्रास पर आक्रमण किया और 15 साल के संघर्ष के बाद 26 जनवरी 1761 ई. में पांडिचेरी पर अधिकार कर लिया।

13.  अंग्रेजों ने तेरहवीं शताब्दी में आक्रमण किया 1601 में ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए अंग्रेज भारत आएवे यहां की ऐश्वर्य, सुख-समृद्धि को देखकर बहुत प्रभावित हुए। भारत के कमजोर नेतृत्व और राजनीतिक अस्थिरता को समझते हुए उनके मानस में तीव्र इच्छा पैदा हुई। 23 जून 1757 ई. को, रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल के नवाब, सिराज उद-दौला के कमांडर मीर जाफर की गद्दारी के कारण प्लासी की लड़ाई जीती। इसके बाद, उन्होंने भारत के कुछ क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में ले लिया। लेकिन पूरे भारत पर ब्रिटिश अधिकार 28 जून, 1858 ई. से 14 अगस्त, 1947 ई. तक रहा।

 

इस प्रकार इतिहास साक्षी है मिस्र ने 21 वर्षों में, ईरान ने 15 वर्षों में, इराक ने 17 वर्षों में और यूरोप ने 50 वर्षों में अपनी संस्कृति और सभ्यता को खो दिया। तब फिर भारत में ऐसी क्या विशेषता थी कि इतने आक्रमणों और अत्याचारों के बावजूद इसका सभ्यतागत अस्तित्व आज तक बना हुआ है। यदि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत देश से तीन इस्लामी राष्ट्र बन गए, तो नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार भारतीय सभ्यता और संस्कृति का समर्थन करने वाले राष्ट्र भी बने यदि इस्लाम और ईसाई संस्कृति भारतीय धरती पर प्रभाव डालने में सफल होती है, तो भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अमिट छाप जापान, वियतनाम, भूटान, थाईलैंड, कोरिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया आदि देशों पर देखी जा सकती है।

          भारतीय सभ्यता संस्कृति में वे अमृत तत्व हैं, ऐसे महापुरुष, संत, ऋषि, ज्ञानी और विद्वान हैं जिन्होंने भारतीय आत्मा को मरने नहीं दिया, इसकी ज्योति जन-मानस में अक्षुण्ण जाग्रत रखी। ऐसे अनेक चरित्रों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और उनके वंशजों का भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अस्तित्व को पुष्पित करने और फलने-फूलने में एक अद्भुत योगदान रहा है। भगवान बुद्ध, बौद्ध धर्म के संस्थापक, जैन धर्म के विभिन्न भगवान, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी, सभी क्षत्रिय थेइन लोगों ने अज्ञानता से उत्पन्न होने वाले अंधविश्वासों और बुराइयों का जोरदार खंडन किया

          मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भारतीय संस्कृति और सभ्यता की आत्मा हैं। श्री राम के बिना एक भारतीय राष्ट्र की परिकल्पना निराधार है। श्रीराम के जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं:

1.    अपने आप को सामर्थ्यवान बनाएँ। दूसरे खुद अपना दुख मिटाने के लिए आपसे समझौता करेंगे। सुग्रीव को राम में बाली से भयमुक्त होने, अपनी पत्नी तारा और अपना खोया राज्य वापस पाने का मार्ग दिखा और उन्हें प्राप्त किया तब उसने श्री राम की सहायता की। वैसे ही रावण द्वारा अपमानित कर राजदरबार से निष्काषित किए जाने पर विभीषण को शरण और जीवन का सम्मान वापस पाने का मार्ग राम में ही दिखा और श्री राम द्वारा लंका का राजतिलक किये  जाने के बाद विभीषण श्रीराम की सहायता के लिए तैयार हुए और राम की लंका पर विजय सुनिश्चित की

2.    अपनी कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता विकसित करें। किसी के मदद की अपेक्षा न रखें। जैसा कि श्री राम ने अपनी कठिनाइयों को दूर करने के लिए अयोध्या और जनक से कोई मदद नहीं मांगी, खुद नए संबंध बनाए।

3.    साम्राज्य की नींव अधर्म और बुराई पर न डालें, क्योंकि उनकी दीवारें कमजोर होती हैं। इसलिए सत्य और धर्म के मार्ग पर चलें, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनें, क्योंकि लोग एक शक्तिशाली व्यक्ति से प्यार करते हैं।

4.    आदर्श स्थापित करें। सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार रहें और समाज में हर वर्ग और व्यक्ति के महत्व को समझें, किसी की उपेक्षा न करें, बल्कि उनका प्रभावी ढंग से उपयोग करें। जैसे श्री राम ने किरीट, भील, जनजाति, वानर आदि सभी वर्गों का महत्व समझा।

5.    राष्ट्र प्रेम, पिता-पुत्र आदर्श, भाइयों में भक्ति, पति-पत्नी का प्रेम, शासक-शासित समीकरण और सत्य तथा निष्ठा के साथ बलिदान के लिए तैयार रहना आदि श्री राम की सच्ची भक्ति के रूप में आत्मसात करने के आदर्श हैं।

 

          किसी भी समाज-देश का स्वर्णिम भविष्य तभी सुरक्षित होगा जब उस के नागरिक वहां की संस्कृति और सभ्यता का सम्मान करेंगे। इसके लिए यूनेस्को ने भी सभी देशों को सुझाव दिया है:- 'शिक्षा की जड़ें अपनी संस्कृति में होनी चाहिए, लेकिन प्रगति के लिए प्रतिबद्ध'।

          जैसे इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है। वहां के राष्ट्रपति जोको विडोडो, जो एक मुस्लिम भी हैं, 3 नवंबर 2019 को भारत आए। भारत के प्रधानमंत्री से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने बेटे का नाम नरेंद्र रखा है। भारत में रहते हुए कई बड़ी हस्तियों ने अपने बेटों का नाम गैर भारतीय रखा। इंडोनेशिया के मुसलमान अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को श्रद्धांजलि देते हुए महाराजा सुग्रीव के नाम पर एक विश्वविद्यालय का निर्माण करते हैं। लेकिन भारत में कई समुदाय अपनी जड़ें अरब और यूरोप में ढूंढते हैं, जबकि इन समुदायों के पूर्वज अक्सर हिंदू थे एक तरफ जहां कॉन्वेंट स्कूलों और मदरसों ने भारत में शिक्षा को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने में अपनी भूमिका निभाई है; दूसरी ओर, उन्होंने भारतीय संस्कृति और सभ्यता की जड़ों को समाप्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिए मेरा उद्देश्य बस इतना ही है, हमारी पूजा-पद्धति और मान्यताएं चाहे जो भी हों, लेकिन हमारी आस्था, संस्कृति और समर्पण भारत राष्ट्र के प्रति होनी चाहिये

          अपनी सभ्यता और संस्कृति को न भूलें उसे बनाए रखें और अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित रहें।

(स्वामी धर्मबंधु के लेखन पर आधारित) 

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मन की माला                                             लघु कहानी - जो सिखाती है जीना

          बनारस के किसी मुहल्ले में एक पंडित जी और एक मुल्ला जी रहा करते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। दोनों अपने-अपने धर्म के महान विद्वान थे। दोनों अक्सर धर्म चर्चा किया करते थे, जिसे मुहल्ले वाले ध्यान से सुना व सराहा करते थे। वैसे तो सभी बातों में प्रायः एक जैसे मत रखते थे, पर माला फेरने को लेकर दोनों में अक्सर विवाद हो जाता था। पंडित जी, अपने धर्मग्रंथों के अनुसार सीधी माला फेरते थे और मुल्लाजी इस्लाम ग्रंथों के आधार पर उल्टी माला फेरते थे। दोनों एक-दूसरे की माला फेरने की रीति को गलत बताते और झगड़ पड़ते। एक दिन दोनों इसी बात पर झगड़ रहे थे कि तभी कबीरदास वहाँ से टहलते हुए निकले। उन्होंने थोड़ी देर ठहरकर दोनों का विवाद सुना और फिर जोर से हंस पड़े। क्यों कबीर, मेरी बात पर तुम क्यों हंसे?', पंडित बोला। कबीर मुस्कुराये फिर बोले,

'माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर।

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।

"जरा समझाकर बताइए, कबीरदास जी।', मुल्ला ने कहा।

'अरे भाई, कबीरदास जी समझाते हुए बोले, 'तुम दोनों के माला फेरने का ढंग एक ही है। पंडित जी सीधी माला फेरते हैं, जिसका अर्थ है सारे सद्गुणों को अपने अंदर आत्मसात करना और उल्टी माला फेरने का अर्थ है अपने सारे अवगुणों को अपने घट रूपी शरीर से उलटकर बाहर निकाल देना। दोनों का उद्देश्य एक ही है पर ढंग अलग-अलग है, इसलिए अभी तुम माला फेरने से पहले अपने मन को फेरो तभी विवाद मिटेगा।' सुनकर दोनों नतमस्तक हो गए।

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यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/RLG-A3qpPCo


सूतांजली नवंबर 2024

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