सूतांजली ०२/०३ अक्तूबर २०१८
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कौन जानता गांधी को?
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अक्तूबर 2018 से प्रारम्भ हो गया है महात्मा गांधी का 150वां जन्मदिन। देश ही नहीं, विदेशों मे भी इस अवसर पर साल भर चलने वाले कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।
क्या आप इनमें से किसी से भी जुड़े हैं? या आप खुद कोई आयोजन
कर रहे हैं? अगर नहीं, तो सबसे पहले इस
पर विचार कीजिये और अपने आप को इससे जोड़िए। गांधी से जुड़ना केवल सत्य व अहिंसा से
जुड़ना नहीं यह जोड़ है मानव का मानव से, सृष्टि का सृष्टि से,
विध्वंस को छोड़ सृजन से।
अगर
आप यह सोच रहे हैं कि आप इस आयोजन से ‘कैसे
जुड़ सकते हैं’? न जानकारी है, न आर्थिक
सामर्थ्य, न शारीरिक बल, न समय, तो मैं कहीं पढ़ी यह बात बताना चाहूँगा – “हमने जन्म लिया और हम जीवित
हैं। किस लिए जन्म लिया और किस लिए जीवित हैं – यह हम नहीं जानते। जब तक जीवित हैं
अपने हित के साथ सब के हित के लिए जीयें। सबके हित के लिए यानि मात्र मनुष्य के
लिए नहीं, सभी जीवधारियों के हित के लिए भी। जीयो तो बस इस
तरह जियो। इस तरह जीने के लिए शायद कष्ट भी उठाना पड़े । पूछोगे दूसरों का हित करने
की क्षमता हममें नहीं तो? हममें से बहुत लोगों को दो समय की
रोटी कमाना ही एक समस्या है। ऐसे में दूसरों का भला क्या हित कर पाएंगे? इस बारे में इतना तो कर ही सकते हैं कि
दूसरों के प्रति अन्याय न हो। इस तरह तो जिया ही जा सकता है। दूसरों
को सुख न दे पाएँ, न सही, पर दुख तो न दिया जाए”।
हमने
गांधी पर आधारित एक प्रश्नोत्तरी (क्विज) तैयार किया है-“कौन जानता गांधी को” पावर पॉइंट पर आधारित यह खेल बच्चों के लिए प्रमुखतया 3-5, 6-8 तथा 9-12 कक्षा के विद्यार्थियों के लिए है और समय है लगभग 60 मिनट।
इस खेल का उद्देश्य बच्चों में गांधीजी के बारे में जागरूकता पैदा करना और सच्चाई
बताना है। हम यह खेल अपने शहर, कोलकाता के विभिन्न विद्यालयों, संस्थाओं (रोट्राक्ट, लियो आदि) , आवासीय कॉम्प्लेक्स आदि में आयोजित करेंगे। आपके लिए जहां भी संभव हो इस
खेल का आयोजन करवाएँ। इस खेल से आप और भी कई प्रकार से जुड़ सकते हैं। अगर आप जुड़ना
चाहते हैं, किसी भी रूप में तो हमें सम्पर्क करें, ई मेल, SMS
या व्हाट्स ऐप पर।
संपादक
गांधी? कौन गांधी? क्या किया उसने ?
मैंने
एक दन्त कथा पढ़ी - ‘रक्तचिन्ह’। वैसे तो दन्त कथा
का अर्थ होता है वह कहानी जिसे सुनी गई हो और सत्य से दूर कपोल कल्पना हो। हो सकता
है यह दादी-नानी की कहानी रही हो। अब इस कथा की उत्पत्ति की मुझे जानकारी नहीं है
लेकिन मैंने इसे पढ़ा राजेन्द्र लहरिया के लघु उपन्यास ‘लोकलीला’ में। वैसे देखा जाय तो उपन्यास में जिस लीला का आख्यान है उसे लोकतन्त्र
कहते हैं। पता नहीं लेखक ने इसमें से ‘तन्त्र’ को क्यों छोड़ दिया। खैर हम उसे छोड़ सुने, नहीं
पढ़ें दन्त कथा – ‘रक्तचिन्ह।
एक
था राजा। । दो ही प्रकार के राजा हुआ करते थे – क्रूर और दुष्ट या फिर दयालु
और न्यायप्रिय। हमारी कथा का राजा प्रजाबंधु था। सब सुखी थे। अमन चैन था।
अत: राजा भी आराम से था। षटरस भोजन करता और हर प्रकार के सुख और भोग का आनंद लेने
के लिए भी उसके पास समय था। धीरे-धीरे
बूढ़ा होने लगा। और जैसे जैसे बूढ़ा होने लगा उसे दो विचित्र इच्छाएं उत्पन्न हो
गईं। मृत्यु की चिंता सवार हुई, अत: अमरत्व की
ईच्छा पैदा हुई। और इसके साथ इंसान के खून
पीने की इच्छा बलवती होने लगी। बहुत सोच विचार के बाद भी जब उसे कोई उपाय नहीं समझ
आया तो उसने अपनी समस्या अपने मंत्रियों के
सामने रखी। राजा की इच्छा सुनकर मंत्री मण्डल
को काठ मार गया, उनकी बोलती बंद हो गई। सब एक दूसरे का मुंह
ताकने लगे। आखिर आपस में सलाह करके उन्होने
कहा कि राजन आपकी यह इच्छा संसार में कोई पूरी नहीं कर सकता। लेकिन धर्मराज
कर सकते हैं, अत: राजन को धर्मराज की तपस्या कर उन्हे
प्रसन्न करना चाहिए। राजा धार्मिक तो था
ही। वह तुरंत तपस्या पर बैठ गया। उसने बड़ी कठिन तपस्या की। यह ‘कठिन तपस्या’ भी बड़ी विचित्र चीज है। कुछ एक स्थानों
पर तो इस कठिन तपस्या की चर्चा है, यथा-एक टांग पर खड़े होकर, दोनों हाथ उठाकर, बिना हिले डुले कि चीटियों ने
अपने घर बना लिए। लेकिन अधिकतर जगह पर इस ‘कठिन’ की कोई व्याख्या नहीं है। मैं सोचता हूँ कि
अगर इस कठिन तपस्या को वह कर सकता था तो हम क्यों नहीं कर सकते? खैर यह विषयांतर हो जाएग अत: मान लेते हैं कि राजा ने बड़ी कठिन तपस्या
की। शायद इन्द्र को उनकी तपस्या से कोई भय नहीं रहा होगा या फिर उस समय
रंभा-उर्वशी व्यस्त रहीं होंगी। अत: वे
राजन की तपस्या भंग करने नहीं आईं। परिणाम यह हुआ कि राजा की तपस्या पूर्ण हुई और
धर्मराज प्रसन्न हो गए। राजा ने अपनी इच्छा का वर मांग लिया और धर्मराज ने, मरता क्या न करता, वर दे दिया। लेकिन साथ ही उस ‘तथास्तु’ के ऊपर एक तारा का चिन्ह (star mark) लगा दिया। जिसका अर्थ होता है, शर्तें (T&C) हैं। राजन ने नियम पढ़ा। सौभाग्य से दो ही नियम थे,
अत: पढ़ने में दिक्कत नहीं हुई। पहला- जिस भी इंसान का खून पीने की इच्छा होगी उससे
राजा को कहना होगा, “मैं तुम्हारा खून पीना चाहता हूँ”। बस राजा की जीभ अपने आप लंबी हो जाएगी, उस आदमी तक पहुँच जाएगी और वह
उसका खून पी सकेगा। दूसरा – अगर उस इंसान ने खून देने से इंकार कर दिया तो यह
वरदान उसी समय समाप्त हो जाएगा और राजा का अमरत्व भी। धर्मराज इतना बता कर गायब हो
गए। इधर राजा का चेहरा राक्षसों की तरह भयानक हो गया। जो भी देखता डर कर काँपने
लगता, उसकी बोलती बंद हो जाती और राजा आराम से उसका खून पी
लेता।
इस
तरह वर्षों, लगभग दो, ढाई सौ या तीन सौ
वर्ष गुजर गए। एक दिन राजा की सवारी जा रही थी। तभी उसने देखा सामने से एक नौजवान किसान चला आ रहा है। उसके दोनों हाथों
में सामान था। ऐसा प्रतीत हो रहा थी कि किसी मेले से अपने माँ-बाप, पत्नी, बच्चों के लिए उपहार लिए उन्हे देने के लिए चला जा रहा है। परिवार
को मिलने वाली खुशी का अंदाजा करते हुए वह लगभग दौड़ता हुआ बड़ी प्रसन्न मुद्रा में
चला जा रहा था। उसे देखते ही राजा को उसका
खून पीने की इच्छा जागृत हो गई और आनन
फानन में उसने कहा, “मैं तुम्हारा खून पीना चाहता
हूँ”। अपने परिवार को मिलने वाली खुशी का खून वह इस प्रकार बरदस्त नहीं कर पाया और
छूटते ही उसके मुंह से निकल गया, “नहीं राजन, आप मेरा खून नहीं पी सकते”। उसके यह कहते ही राजा को मिला वरदान समाप्त
हो गया। उसकी शक्ति समाप्त हो गई और वह वहीं पर गिर पड़ा। कुछ ही देर में राजा की
मृत्यु हो गई।
“कैसा
लगा आपको गांधी का यह परिचय?”
“गांधी? लेकिन इसमें गांधी हैं कहाँ?”
“क्यों
क्या आपको गांधी नहीं दिखे? तब मिक्रोस्कोप लगा कर पंक्तियों के बीच में पढ़ें।
गांधी साफ साफ दिख जाएंगे। अरे भाई, साधनहीन, श्रीहीन, कमजोर, निहत्थे
किसान, मजदूर और जनता में हिम्मत फूंकने वाला तो वो गांधी ही
था जिसके कारण वे साधन सम्पन्न बलवान हथियारों से लैस ब्रिटिश साम्राज्य को कह सके, ‘तुम मेरा खून नहीं पी सकते’।”