सूतांजली ०३/०२ सितंबर २०१९
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पर्यावरण, पीतरों की याद में
इस
माह ‘पितृ’ पक्ष है। शास्त्रोक्त, पारम्परिक और पारिवारिक विधि से हम पीतरों को याद करेंगे। तर्पण,
ब्राह्मण भोजन, गाय-कीट-पतंग-पक्षी एवं अन्य पशुओं के लिए भोजन में हिस्सा निकालेंगे।
गौशालाओं में दान और गंगा स्नान का भी विधान है, शायद वह भी
करें। उनकी बातें याद कर हम आँगन में तुलसी, नीम, पीपल वृक्षों को भी यदा कदा याद कर लेंगे।
डॉ.पी.जोशी
बताते हैं कि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के नजदीक शुक्लापुर गाँव के श्मशान
घाट पर अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के बाद, दिवंगत की याद में एक पौधा लगाते हैं और चिता की ठंडी राख़ खाद के रूप में
डालते हैं। बिहार के गया जिले में रोशनपुरा ग्राम पंचायत के गाँव भलुआर में भी ऐसा
ही होता है। इंदौर में भी इंदौर ईको सोसाइटी ने पूर्वजों की याद में पेड़ लगाने का
काम शुरू किया है। ‘पितृ-पर्वत’ योजना
के तहत 400 एकड़ में फैले देवधरम पहाड़ी पर पौधे लगाए गए। स्थानीय लोग नगर-निगम में
250 रुपये जमा कर अपने परिवार के किसी प्रियजन की याद में पेड़ लगा सकते हैं।
दिल्ली सरकार ने ‘अपनों की यादें’ नाम
से ऐसी ही पहल की है।
शहरवासियों
के लिए पेड़ लगाना एक समस्या है। कहाँ लगाएँ और कैसे लगाएँ? निराश न हों, आसपास पता लगाएँ कोई-न-कोई हल अवश्य
मिलेगा। कोलकाता की “गंगा मिशन” के पास भी इसका हल है। 1000
रुपए में 10 नारियल के पेड़ से शुरुआत कर अपनी श्रद्धानुसार अनुदान
कर अपने प्रियजन की याद में पेड़ लगवा सकते हैं। एक पंथ दो काज। अपने पीतरों की याद
में इस वर्ष कुछ नया करें जो लंबे समय तक चले,
अगली पीढ़ी को भी मिले! विस्तृत जानकारी के लिए संपर्क कर
सकते हैं श्री प्रह्लाद गोयनका को 9831094640 पर।
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गांधी
क्यों?
हम
गांधी की चर्चा क्यों करते हैं? कुछ
तो रहा होगा उनमें जो हमें बार बार उनकी चर्चा करने पर मजबूर करता है? उनके बिना गुजारा होता नहीं दिखाता? अनबुझी
पहेलियों के उत्तर हमें उनके पास ही मिलते हैं? लोगों ने
गांधी को अपने अपने ढंग से देखा और जैसा दिखा वैसा ही चित्रित किया। लंबे समय तक
गांधी के निजी सचिव रहे महादेव देसाई ने भी उन्हे अपनी आँखों से देखा। उन्हे क्या दिखा? उनके विचार से गांधी को अद्वितीय और लोकप्रिय
नेता बनाने वाली चीज क्या थीं?
एक
सम्मोहक नेता के कई असाधारण गुण उनमें नहीं थे। स्नेहपूर्ण आँखों और मुसकुराते
चेहरे के अलावा उनमें कुछ भी ऐसा नहीं था जिसे चित्ताकर्षक कहा जाए। प्रसिद्ध
कवयित्री सरोजिनी नायडू उन्हे ‘मिकी माउस’ कहती थीं। गांधी ने कोई असाधारण
विद्वत्ता अर्जित नहीं की थी। भारतीय नेताओं में कई थे जो उनसे ज्यादा जोरदार भाषण
दे सकते थे। कई विख्यात व्यक्ति थे जो अपनी तपश्चर्या और शुद्धाचरण के लिए विख्यात
थे। फिर वे कौन से गुण थे जिन्होने गांधी
को इतना अद्वितीय बनाया?
महादेव
देसाई के खयाल से गांधी को अद्वितीय बनाने में उनके दो गुणों का बड़ा योगदान था। एक, उनकी पूर्ण पारदर्शिता। उनके विचार, वचन और कर्म
में कोई भेद या दूरी नहीं थी। भारत की जनता उनके इस गुण को अपने सहज बोध से भी
समझती थी और अनुभव से भी। यहाँ एक ऐसा शख्स था, जो अपनी बड़ी
से बड़ी गलती को सबके सामने कबूल कर सकता था। यह शख्स उनके भी पापों के लिए
प्रायश्चित कर सकता था। उनके निजी व्यवहार और सार्वजनिक जीवन के बीच कोई खाई नहीं
थी। उनके जीवन की किताब दूसरों के सामने हमेशा
खुली रही।
उन्हे
अद्वितीय बनाने वाला दूसरा गुण था, सभी
मनुष्यों की गरिमा को बहाल करने की उनकी उत्कट अभिलाषा। स्वतन्त्रता ले लिए संघर्ष
का उनका तरीका बेजोड़ था मगर उसके अपने उतार-चढ़ाव थे। गांधी के सभी सत्याग्रह सफल
नहीं हुए। लेकिन उनके विफल सत्याग्रहों समेत हरेक सत्याग्रह ने, इनमें शामिल रहे लोगों के नैतिक स्तर को ऊपर उठाया और उनकी कड़ी
नैतिक परीक्षा ली। यह गांधी की खूबी थी
कि वे अपने लोगों के गुनाहों में खुद को
हिस्सेदार मानते थे, और दोष अपने सिर ले लेते तथा श्रेय
दूसरों को देते थे।
गांधी
संत थे, पर दूसरे संतों की तरह उन्होने स्वयं को लोगों से
दूर नहीं रखा। गांधी राजनीतिक थे, लेकिन दूसरे राजनेताओं की
तरह उन्होने कभी स्वयं को नैतिक उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं समझा। गांधी के व्यापक दृष्टिकोण का ही परिणाम था कि
उनके चरित्र में कई तरह के अद्भुत समन्वय दिखते हैं।
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गणेश, भारत और हम
क्लौडअल्वारेस गोवा के निवासी हैं, ईसाई
हैं और देश के अग्रणी पर्यावरण तथा स्वदेशी चिंतक हैं। यहाँ प्रभास परंपरा न्यास
की व्याख्यानमाला 2016 के कुछ अंश उद्धृत कर रहे हैं।
...
मैं गोवा से हूँ, जहां गणेश देवता का प्रचलन ज्यादा है। गणेश उत्सव
के दौरान उनके सम्मान में सभी कुछ बंद हो जाता है, मछली खाना
भी! इस छोटे-से राज्य में मछली खाना बंद करना सबसे बड़ा त्याग है। गोवा के सबसे बड़े
मेहमान के आगमन और विदाई के उत्सव को मनाने के लिए आर्थिक प्रतिष्ठान से लेकर
स्कूल तक, आधुनिक दौर के सभी संस्थानों की दैनिक गतिविधियां
बंद हो जाती हैं। शराब, मांस या मछली की न तो इच्छा की जाती
है, न ही परोसा जाता है। इस मामले में सख्त अनुशासन का पालन
किया जाता है। पाँच या सात दिन के लिए और कभी कभार ग्यारह दिनों के लिए हम अपने
ईसाई घरों में कोई भोजन नहीं पकाते। सारा भोजन पड़ोसियों के यहाँ से आता है। ‘गणेश’ के भीतर यह सब समा जाता है। ...
...
वास्तव में यदि हिन्दू और उनके कार्यों के लिए ‘धर्म’ का उल्लेख करना बंद करते हैं, तो हम उस तर्कसंगत, तार्किक,
भौतिकवादी, व्यवहारिक, नैतिक परंपरा से
बच जाते हैं, जहां बुनकर से लेकर संत तक इस उप-महाद्वीप में
रहता है और किसी-न-किसी रूप में योगदान करता है। ये परंपरा कभी आध्यात्मिक होती है, कभी नास्तिक। ...
... शिक्षा
का उद्देश्य आज और कल के लिए तैयार होने भर से नहीं था, आत्म
अनुभूति हासिल करने से था। गुरुकुल गुरु और शिष्य के बीच मजबूत संबंध बनाता था।
... ... जैसे बुनकरों के कामकाज को ठप करने के लिए उनके अंगूठे काटे गए, उसी तरह 19वीं सदी के शुरुआत में आधुनिक बौद्धिक कसरत ने हमारी व्यवस्था
और कौशल को बर्बाद कर दिया। ...
...
हम बहुत लंबे समय से ‘भारत विचार’ में आस्था खो
चुके हैं। हमें सोचने और मानने की जरूरत है कि भारत एक बेहतरीन विचार है जिसे हम
फिर से अस्तित्ववान बना सकते हैं।
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प्रार्थना
मैं
सुखी रहूँ। मेरा परिवार सुखी रहे।
मेरा समाज
सुखी रहे। मेरा राष्ट्र सुखी रहे।
सारा
संसार सुखी रहे ।
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हमें
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहता है। - संपादक
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