सूतांजली ०३/०६ जनवरी २०२०
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पहला पागलपन – २ आना रखना १४ आना देना
पागल किसे कहते हैं? जो बनी बनाई लीक पर नहीं चलता, जो
अपनी सुख-सुविधा और सुरक्षा की परवाह न करके नए रास्ते बनाने की कोशिश करता है।
दुनिया उसे ही तो पागल कहती है। लेकिन जब ऐसे पागल को सफलता मिल जाती है तब हम उसे
ही अपना पथ प्रदर्शक मान लेते हैं, उसके आगे सर झुकाते हैं।
ऐसे ही एक पागल हैं श्री अरविंद , जिन्हें
हमने अपना पथ प्रदर्शक माना और उनके सामने अपना सर झुकाया । अपनी धर्मपत्नी
श्रीमती मृणालिनी देवी को लिखे एक पत्र में उन्होने अपने तीन पागलपनों की चर्चा की
है। वे लिखते हैं –
श्री अरविंद |
मेरे तीन पागलपन हैं। पहला पागलपन है
मेरा यह दृड़ विश्वास कि भगवान ने जो गुण,
प्रतिभा, उच्च शिक्षा, विद्या, धन दिया है, वह सब भगवान का है। जो कुछ परिवार के
भरण पोषण में लगता है और नितांत आवश्यक है
उसे ही अपने लिए खर्च करने का अधिकार है, उसके बाद जो कुछ
बचा रह जाता है उसे भगवान को लौटा देना उचित है। यदि मैं सब अपने लिए, सुख के लिए, विलास के लिए खर्च करूँ तो मैं चोर
कहलाऊंगा। हिन्दू शास्त्र कहते हैं कि जो भगवान का धन लेकर भगवान को नहीं लौटाता, वह चोर है। आज तक मैं भगवान को दो आना देकर, चौदह
आना, अपने सुख में खर्च कर, हिसाब
चुकता कर, सांसारिक सुख में मस्त था। जीवन का अर्धांश वृथा
ही गया, पशु भी अपना और अपने परिवार का उदर भर कर कृतार्थ
होता है।
मैं इतने दिनों तक
पशुवृत्ति और चौर्यवृत्ति करता आ रहा था – यह मैं समझ गया हूँ। यह जान कर मुझे बड़ा
अनुताप और अपने ऊपर घृणा हो रही है; अब नहीं, वह पाप मैंने जीवन भर के लिए छोड़ दिया है। भगवान को देने का अर्थ
क्या है? इसका अर्थ है, धर्म-कार्य में व्यय करना।
जो रुपया सरोजिनी (बहन) और उषा को दिया है उसके लिए मुझे कोई अनुताप नहीं, परोपकार करना धर्म है। आश्रित की रक्षा करना महा धर्म है, किन्तु केवल भाई-बहन को देने से हिसाब नहीं चुक जाता। इस दुर्दिन में
समस्त देश मेरे द्वार पर आश्रित है, मेरे तीस कोटी भाई-बहन
इस देश में हैं, उनमें से बहुतेरे अनाहार से मर रहे हैं, अधिकांश कष्ट और दु:ख से जर्जरित होकर किसी प्रकार बचे हुए हैं, उनका हित करना होगा।
......... केवल सामान्य लोगों की
तरह खा-पहन कर, ठीक ठीक जिस चीज
की जरूरत है उसे ही खरीद कर और सब भगवान को दे दूँगा – यही मेरी इच्छा है। अगर तुम सहमत हो,
त्याग स्वीकार करो तो मेरी अभिलाषा पूर्ण हो सकती है। ........”
(श्री अरविंद सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पत्रिका अग्निशिखा से। २रा
और ३रा पागलपन अगले अंक में)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मित्र और मित्रता
प्रश्न
– क्या होती है मित्रता और किसे कहते हैं मित्र?
खलीलजिब्रान के उत्तर –
·
हमारा मित्र
-
हमारे अभावों की
पूर्ति है।
-
हमारा खेत है जिसमें
हम प्रेम का बीज बोते हैं और कृतज्ञता का फल प्राप्त करते हैं।
-
हमारा भोजन है, आवास है, अलाव है – क्योंकि हम उसके पास अपनी भूख
लेकर जाते हैं और शांति पाने की इच्छा से उसे खोजते हैं।
·
जब हमारा मित्र अपना
दिल खोलकर हमारे सामने रखे तब हम “ना” कहने से डरें नहीं और “हाँ” कहने से हिचकें
नहीं।
·
जब मित्र चुप हो जाता
है तब भी हमारा हृदय उसके दिल की आवाज सुनना बंद नहीं करता, क्योंकि मित्रता में, शब्दों के बिना ही सारे विचार, कामनाएँ और आशाएँ अव्यक्त ही पैदा होती हैं और संप्रेषित होती हैं।
·
मित्रता में आत्मीयता
को और गहरा बनाने के सिवा और कोई प्रयोजन नहीं होता है।
·
हमारी प्रिय से प्रिय
वस्तु मित्र के लिए होती है क्योंकि जिसने हमारे जीवन का ‘भाटा’ देखा है उसे जीवन का ‘ज्वार’ भी दिखाना है।
·
मित्र ऐसी वस्तु नहीं
है जिसे हम समय की हत्या करने के लिए खोजते हैं बल्कि उसे समय को सजीव करने के लिए
खोजते हैं।
·
मित्र का कार्य हमारे
अभाव की पूर्ति करना नहीं बल्कि हमारे खालीपन को भरना है।
·
हमारी मैत्री के
माधुर्य में हास्य का स्फुरण और उल्लास का विनिमय हो।
·
इन्ही सुबह की नन्ही
ओस की बूंदों में हृदय प्रभात देखता है और ताजा हो उठता है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
१०८ ही क्यों?
संख्या तो महज एक संख्या ही है। क्या
ऐसा है? अगर ऐसा है तब कोई संख्या शुभ या अशुभ कैसे हो गई? विश्व के हर देश में, समुदाय में, संप्रदाय में शुभ और अशुभ संख्या है और इस मान्यता के पीछे कोई-न-कोई
तर्क भी है। अत: हर संख्या महज एक संख्या नहीं है, उससे
ज्यादा है। हम १०८ को अति शुभ मानते हैं। इसके कई कारण हैं। हर कारण का अपना अलग औचित्य
है। हर माला में १०८ मनके होते हैं। ये मनके भी अलग अलग बीजों के बने होते हैं यथा
चन्दन, तुलसी, मूंगा, रुद्राक्ष आदि। इनका प्रयोग मंत्रों के जाप की गिनती के लिए किया जाता
है। इन्हे लोग गले में भी पहनते हैं। इनके अलावा मणि-माणक्य-मोतियों की भी मालाएँ होती
हैं। इनके मनकों की संख्या निर्धारित नहीं होती है। मंत्रों के जाप के लिए बनी
माला १०८ मनकों की होती हैं। इसके अलावा
एक १०९वां मनका, जिसे सुमेरु कहते हैं,
प्रारम्भ और समाप्त होने की जानकारी देने के लिए होता है। इसे लांघते नहीं। १०८
जाप पूरा करने के बाद सुमेरु से माला को पलटकर पुन: जाप प्रारम्भ किया जाता है। प्रश्न
है १०८ ही क्यों?
हमारी पृथ्वी वृत्ताकार है। एक वृत्त
३६०॰ का होता है। राशियाँ १२
होती हैं। इन १२ राशियों को अँग्रेजी में जोडियक साइन कहते हैं। ये १२ राशियाँ
हिन्दी और अँग्रेजी में हैं – १.मेष
(एरिस), २.वृषभ (टोरस), ३.मिथुन
(जौमिनी), ४.कर्क (कैंसर), ५.सिंह
(लियो), ६.कन्या (वर्गो), ७.तुला
(लिब्रा), ८.वृश्चिक (स्कोर्पिओ), ९.धनु
(साजीटेरियस), १०.मकर (कैप्रीकोर्न), ११.कुम्भ
(एक्वेरियस) और १२.मीन (पाइसेस)। इन्ही १२ राशियों में समाहित हैं २७ नक्षत्र। ये
हैं – १.अश्विनी, २. भरिणी, ३.कृतिका, ४.रोहिणी, ५.मृगशिरशा, ६.आर्द्रा, ७.पुनर्वसु, ८.पुष्य, ९.आश्लेषा, १०.मघा, ११.पूर्वाफाल्गुनी, १२.
उत्तराफाल्गुनी, १३.हस्त, १४.चित्रा, १५.स्वाति, १६.विशाखा, १७.अनुराधा, १८.ज्येष्ठा, १९.मूला, २०.पूर्वाषाढ़ा, २१.उत्तराषाढ़ा, २२.श्रवणा, २३.धनिष्ठा, २४.शतभिषा, २५.पूर्वाभद्रपद, २६.
उत्तराभद्रपद और २७.रेवती। २८वां नक्षत्र
अभिजित है लेकिन इसकी गणना नक्षत्रों में नहीं होती है। इन
२७ चक्रों को ४ चरणों में विभक्त किया
जाता है जिसे पद कहते हैं। इस पूरे चक्र में कितने पद हैं? २७
नक्षत्र X ४ पद = १०८। अत: १०८ बार मंत्र जाप कर प्रार्थना
करने से हम हमारी सम्पूर्ण पृथ्वी से प्रार्थना कर रहे हैं।
अब इसका वैज्ञानिक रूप भी देखें। अगर हम
इस १०८ पद का एक ज्यामितीय चित्र बनाएँ और उसे वैज्ञानिकों द्वारा खोजी हुई ‘गॉड पार्टीकल’ के चित्र से मिलाएँ तो दोनों में अद्भुद समानता देखने को मिलती है।
वैज्ञानिकों का मत है कि हमारी इस सृष्टि का कारण यही गॉड पार्टिकल है।
१०८ पदों का श्री यंत्र |
गॉड पार्टिकल |
दूसरी ध्यान देने वाली बात यह है कि इस पूरी गणना में अंक ‘९’ को बहुत महत्व दिया गया है। हमारी सृष्टि में ९ गृह हैं, ३६० (३+६+०=९) कोण हैं, १०८ (१+०+८=९) पद हैं और २७ (२+७=९) नक्षत्र हैं। हमारा “श्री यंत्र”, संसार का सबसे रहस्यमय ज्यामतीय पहेली भी ९ त्रिभुजों (ट्रैंगल) से ही बना है। ये सब गणनाएँ इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि हम जब भी १०८ बार मंत्रों का जाप करते हैं हम सीधे पूरी सृष्टि से प्रार्थना करते हैं, ९ ग्रहों से प्रार्थना करते हैं, १२ राशियों से प्रार्थना करते हैं, २७ नक्षत्रों से प्रार्थना करते हैं, निर्गुण निराकार ब्रह्म से प्रार्थना करते हैं।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ओस की बूंदें
कहते हैं शब्दों में अर्थ, सीप
में मोती, आँख में चरित्र, बोली में
जन्मक्षेत्र, फूल में खुशबू, और चाल
में आत्मबल में छिपा रहता है। देखने को पारखी दृष्टि चाहिए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आपलोगों के उत्साहवर्धन के हम आभारी है। आपसे प्रेरणा पा कर हम
सूतांजली का स्वरूप बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं। आपके सहयोग की आवश्यकता है, यथा स्वरचित या संकलित लेख और कविता, प्रूफ रीडर, डिजाइनर, सुझाव
और आपका स्नेह तथा आशीर्वाद। आप जितना और जैसा सहयोग कर सकें आपका स्वागत है। - महेश