गुरुवार, 1 सितंबर 2022

सूतांजली सितंबर 2022

 सूतांजली

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वर्ष : 06 * अंक : 02                                                                सितंबर  * 2022

दूसरे को नीचा दिखाने में नहीं.....

खुद को ऊंचा उठाने में समय लगाइये।

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चलें, मिलें फोर्ड के जनरल मैनेजर से...                                            मैंने पढ़ा  

लगभग एक शताब्दी हो चुके हैं इस घटना के। जाहिर है उस समय न तो हिन्दुस्तान आजाद हुआ था, न पाकिस्तान बना था और लाहौर हमारे देश का ही एक अंग था। वहाँ स्कूल जाने वाले एक १७ वर्षीय बच्चे ने एक दिन सड़क पर एक गाड़ी को जाते हुए देखा। वह उसे देखता ही रह गया; उसे यह भी पता नहीं था कि यह क्या है? इसके पहले उसने न तो इसे देखा था और न ही ऐसी किसी चीज के बारे में  सुना था। जब दूसरे दिन भी उसे वहीं वह दिखाई दी, तब उससे रहा नहीं गया और पूरी ताकत तो उसके पीछे दौड़ पड़ा। आखिरकार उसने उस गाड़ी को पकड़ ही लिया। उसने देखा उस गाड़ी पर लिखा था फोर्ड और उसमें ५-६ गोरे बैठे थे। उसने उत्सुकता पूर्वक उनसे पूछा कि यह क्या है? अपने प्रश्नों के उत्तर से उसे पता चला कि इसे मोटर गाड़ी कहते हैं, इसे श्रीमान फोर्ड ने बनाया है, और वे एक दिन में ऐसी कई गाड़ियाँ बनाते हैं। उसे यह भी पता चला कि श्रीमान फोर्ड अमेरिका में रहते हैं। उस बच्चे का मुंह आश्चर्य से खुला रहा गया। उसे कुछ समझ नहीं आया कि इतनी भारी-भरकम चीज क्यों बनाई गई, श्रीमान फोर्ड एक दिन में ऐसी कई मोटर गाड़ी  कैसे बना लेते हैं और तो और ये अमेरिका क्या है और कहाँ है?  

          इसी उधेड़-बुन में वह स्कूल पहुँच गया। उसने अपने अध्यापक से पूछा कि यह अमेरिका क्या होता है और कहाँ है? अध्यापक ने उसे समझाने का बहुत प्रयत्न किया, लेकिन उसे समझ नहीं आया। उसके भूगोल के अध्यापक ने उसे बताया कि ग्लोब की उल्टी-दिशा में अमेरिका है और जैसे हिन्दुस्तान है वैसे ही अमेरिका है लेकिन अमेरिका और हिन्दुस्तान में बहुत फर्क है। यह सुनकर बच्चे की उलझन और भी ज्यादा बढ़ गई। अगर, अमेरिका ग्लोब की उल्टी दिशा में है तो वहाँ लोग क्या सिर के बल खड़े रहते हैं, क्या वे गिरते नहीं, वे कैसी खड़े होते होंगे? और इससे भी ज्यादा वह परेशान हुआ इस बात से कि अमेरिका हिन्दुस्तान जैसा है लेकिन दोनों में बहुत फर्क है। एक जैसा भी है और बहुत फर्क भी है, ये दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती है? खैर उसने उसी समय निश्चय किया कि उसे अमेरिका जा कर उस मोटर गाड़ी  को बनाने वाले श्रीमान फोर्ड से मिलना है।

          दिन-भर वह इसी उधेड़-बुन में रहता। उसके पिता मासिक ३० रुपए पाते थे। उसे पता था कि घर वाले कभी भी न तो सहमत होंगे और न ही उसे अमेरिका भेज सकेंगे। आखिरकार उसने चुपचाप भाग कर ही अपने सपने को साकार करने का निश्चय किया। एक दिन मौका देख कर उसने अपने पिता के कोट में हाथ डाला। उसे २९ रुपए मिले। उसके लिए यह एक बहुत बड़ी रकम थी। बिना किसी को बताये, चुपचाप लाहौर स्टेशन से ट्रेन पकड़ वह बंबई पहुँच गया।

          बंबई तक का सफर तो आसान था। अब उसे अमेरिका जाना था। उसने सुना था पूछ-पूछ कर विलायत जाया जा सकता है। बस, उसने लोगों से पूछना शुरू किया अमेरिका कहाँ है और कैसे जाएँ’? लोग बच्चे की बात सुनकर हँसते, उस पर ध्यान नहीं देते। बल्कि कई तो पूछते कि यह अमेरिका क्या होता है?

          उस बच्चे के लिए तो लाहौर ही सब कुछ था। उसके बाहर एक दिल्ली नाम की जगह भी थी और उसके बाद केवल बस मद्रास ही मद्रास। हाँ, एक और जगह थी जहां पानी के जहाज से जाते हैं, और वह जगह है विलायत। अब वह कैसे बताता कि अमेरिका कहाँ है। लेकिन सोचने पर एक बात समझ आई कि अमेरिका जाना तो पानी के जहाज से ही पड़ेगा। अतः  अब उसने अपना प्रश्न बदल लिया। अब वह पूछ रहा था, समुद्र में जाने के लिए पानी का जहाज कहाँ मिलेगा’? अब लोग समझने लगे और उसे रास्ता बताने लगे। जीवन में हमारे साथ भी यही होता है। हमें अपना प्रश्न सही ढंग से करना नहीं आता, अतः उत्तर भी सही ढंग से नहीं मिलते। जब तक हम अपने प्रश्न ध्यान से नहीं करते हमें उसके उत्तर भी ज्ञान से नहीं मिलते। कुछ ही समय में वह बंबई के बन्दरगाह पर पहुँच गया।

          लेकिन अब एक नयी समस्या! जहाज पर कैसे चढ़े और किस जहाज पर चढ़े। उसने फिर पूछना शुरू किया। लेकिन, न कोई बताने वाला और न ही उसकी बात को सुनने वाला। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह सबसे पूछता रहा। तभी उसने देखा कुछ लोग विशेष पोशाक पहने जहाज की तरफ जा रहे हैं। उसे लगा ये जरूर जहाज के कर्मचारी होंगे। उसने उन्हें भी पूछा, लेकिन उन्होंने बच्चे की बात पर ध्यान ही नहीं दिया। तब तक एक अफसर-सा आता दिखा। उसने उसे पकड़ा। दैवयोग से वह उसी जहाज का कप्तान था और उसने उसकी पूरी बात सुनी। उसने संक्षेप में पूरी बात बताई। उस बच्चे के जज़्बात से वह अभिभूत हो गया। कैप्टन के कहने पर वह जहाज पर उसके बताये काम, जहाज के इंजिन में कोयला डालना, के लिए तैयार हो गया।

          उस बच्चे का जहाज से अमेरिका सफर प्रारम्भ हुआ। काम न रहने पर वह जहाज के डेक आदि जगह पर घूमता और कैप्टेन के निजी कार्य करता। इन सब के बाद भी उसके पास काफी समय बचता। अतः उसने उसे और भी कुछ काम देने की याचना की। कैप्टन ने उसे जहाज के रेस्तरां में बैरे का काम करने का प्रस्ताव दिया जिसे बच्चे ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। अब वह अलग-अलग देश, संस्कृति, भाषा के अनेक लोगों से मिलने लगा, उनके केबिन में भी जाने लगा। यह क्रम लगभग तीन महीने तक चला।

          जहाज अमेरिका के बन्दरगाह पर लग गया। सब लोग झटपट उतरने की तैयारी करने लगे, यह बच्चा सब की नजर बचा जहाज से उतर गया और वहाँ की भीड़ में मिल कर २-३ मील तक भाग खड़ा हुआ। उसे अचानक कुछ पगड़ी धारी पंजाबी दिखे। वे पंजाबी में ही बातें कर रहे थे। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और तुरंत उनसे मिला। वे इसकी पूरी बात सुन उसे अपने घर ले आए। उस मुहल्ले में अनेक पंजाबी थे, उसे तो ऐसा लगा कि वह अमेरिका नहीं पंजाब में  ही है। बच्चे को पता चला कि वे सब पंजाब से ही हैं और कई पीढ़ियों से हैं, खेती करते हैं। वहाँ के सब लोगों ने उसकी बहुत आवभगत की, उसे अच्छे से रखा और उसे प्रस्ताव दिया कि अब वह उन्हीं के साथ वहीं रह जाये। लेकिन बच्चा तैयार नहीं हुआ। वह तो वहाँ श्रीमान फोर्ड से मिलने आया था। जिस प्रकार यम ने नचिकेता को अनेक प्रलोभन दिये थे ठीक वैसे ही बिरादरी वालों ने बच्चे को अनेक प्रलोभन दिये – तुम्हें घर देंगे, खेत देंगे, खेती सीखा देंगे, स्कूल-कॉलेज में आगे पढ़ा देंगे, और तो और एक सुंदर अच्छी सी लड़की से तुम्हारी शादी भी करा देंगे – तुम यहीं रह जाओ। लेकिन इन सब प्रलोभनों को दरकिनार कर बच्चा अपने निश्चय पर अडिग रहा। एक निर्णय लेना और फिर उस पर अडिग रहना साधारण जज्बा नहीं है, जो उस बच्चे में था। आखिरकार उन्होंने भारी दिल से उसे विदा किया।

          अब वह फोर्ड के कारखाने के दरवाजे पर खड़ा था। वहाँ घुसने में उसे कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई। लेकिन फिर, एक के बाद एक कई दरवाजे मिलते गए और उसकी मुसीबत बढ़ती गई। आखिरकार वह एक अफसर के सम्मुख खड़ा था। उसने उसकी पूरी बात सुनी और बोला कि वह उसके हिम्मत की कद्र करता है और उसकी ख़्वाहिश पूरी की जाएगी। उसने उसे कंपनी के अतिथिगृह में भेज दिया। थका हुआ बच्चा गहरी नींद में सो गया। कर्मचारी उसकी खिदमत में खड़े थे। दूसरे दिन उसे कारखाने के उस भाग में ले गए जहां मोटर गाड़ी  के कलपुर्जे बनते थे। एक-एक चीज उसे ठीक से दिखाई और समझाई गई। उसे भी बड़ा अच्छा लग रहा था। लेकिन इसी प्रकार एक के बाद दूसरे, दूसरे के बाद तीसरे कारखाने में जाते-जाते कई दिन बीत गए। फिर दिन सप्ताह में बदलने लगे। वह अब बेचैन हो उठा। बार-बार पूछने लगा उसकी मुलाक़ात श्रीमान फोर्ड से कब होगी। आखिरकार वह एक ऐसी जगह पहुंचा, जहां उसने पूरी चमचमाती, चलने को तैयार मोटर गाड़ी  देखी। वह बहुत खुश हुआ, लेकिन फिर उसने वही सवाल किया श्रीमान फोर्ड कहाँ हैं’?

          बच्चा अब फिर एक और नये उच्चाधिकारी के सामने बैठा था। उसे बताया गया कि फोर्ड से उसकी मुलाक़ात  कल होनी तय है। नियत समय पर वह तैयार था। जब वह फोर्ड के कमरे में पहुंचा तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि वह इस धरा पर है या स्वर्ग में। उस सुसज्जित, विशालकाय, कमरे में फोर्ड ने खुद खड़े होकर उस लड़के का स्वागत किया। फोर्ड ने बहुत ही विनम्र भाषा में उससे भारत की भाषा-संस्कृति, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, प्रदेश, लोग, नदी-नाले-पहाड़ और तो और गांधी के बाबत भी प्रश्न किये। उनकी यह बात, जिसमें फोर्ड ने भारत में अपनी दिलचस्पी दिखाई लगभग ४-५ घंटे चली। बच्चे ने भी अपनी जानकारी के अनुसार सब प्रश्नों के उत्तर दिये। अब वह बच्चा अपने उद्देश्य पर आया, मैं कई दिनों से आपके कारखानों में घूम रहा हूँ। अनेक लोगों को देखा, उनसे मिला। वे सब साधारण वेश-भूषा में थे, अनेक के कपड़ों पर तो तेल वगैरह के दाग भी थे। मैंने आपको वहाँ कहीं नहीं देखा। आप तो इस कमरे में बेशकीमती स्वच्छ चमचमाते सूट में बैठे हैं। तब आप मोटर गाड़ी  कब बनाते हैं?” श्रीमान फोर्ड हंस पड़े, “मैंने एक जनरल मैनेजर नियुक्त कर रखा है। पूरा काम वही करता है”। बच्चे के सिर पर तो जैसे घड़ों पानी फिर गया, लगभग चीखते हुए कहा, “मुझे तो बताया गया कि आप ही गाड़ी बनाते हैं। इसीलिए मैं आप से मिलना चाहता था, लेकिन अगर यह काम आप नहीं आपका मैनेजर करता है तब मैं आप से नहीं आपके मैनेजर से मिलना चाहता हूँ। कृपया मुझे आप उनके पास भिजवायें या उन्हें यहाँ बुलवायें”। बच्चे को अपना ध्येय स्पष्ट था कि उसे मोटर गाड़ी  बनाने वाले से मिलना है। अपने ध्येय की स्पष्टता ही हमें सफल बनती है। फोर्ड का नाम तो वह इसीलिए ले रहा था क्योंकि उसे उस मोटर गाड़ी  के निर्माता के रूप में फोर्ड का ही नाम बताया गया था। अपने लक्ष्य को समझने में उसने जरा भी भूल नहीं की और उसी की लगन लगाए रखा।

          श्रीमान फोर्ड ने एक ठहाका लगाया, “वह मैनेजर तो यहीं है, आप के सामने, हर कहीं है, हर जगह है, हर समय है, सर्व शक्तिमान, परम ब्रह्म ईश्वर। वही इस ब्रह्मांड का शिल्पकार, निर्माता और रचनाकार है। यह वही है जो मेरे कारखाने को चलाता और गाड़ियाँ बनाता है। उसके हाथ अपना पूरा काम सौंप में निश्चिन्त हूँ। बच्चा मंत्र मुग्ध सा फोर्ड की बातें सुनता रहा। उसकी बातें उसके कानों में गूंजने लगीं। उसका जीवन बदल गया। उसे एक नयी रह मिल गई।

( सुरेन्द्र नाथ जौहर – जीवनी, लेखन और विचार से अनुदित)

(अगर आपका जीवन नहीं बदला, अगर आपके कानों में फोर्ड की बात नहीं गूंज रही है इसका मतलब यह है कि आप समझ नहीं पाये हैं, आपको इसे दुबारा पढ़ना है।

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ईश्वर                                                                      लघु बातें   - जो सिखाती हैं जीना

एक दिन मैंने ईश्वर से पूछा कि तुमने सब कुछ खोल कर रख दिया है। पहाड़- समुद्र, वन-उपवन, धरती-आकाश, सूरज-चाँद, सितारे-नक्षत्र, नदी-नाले, समुद्र-ताल, विभिन्न धातुओं का विशाल भंडार, अनगिनत वनस्पतियाँ, अनेक भांति और प्रकार के पशु-पक्षी, अनेकों प्रकार के मानव और भी न जाने क्या-क्या। लेकिन फिर तुमने अपने आप को क्यों छिपा कर रखा है? तुम क्यों नहीं दिखते?

          ईश्वर ने जवाब दिया, मैंने यह सब मानव के हित के लिए, उसके विकास के लिए ही रचा है। सृष्टि के विकास के लिए ही यह सब किया था। परंतु मनुष्य ने तो इस सब को बाजार में बदल दिया। बाजार ही क्यों सुपर बाजार बना दिया। मेरी बनाई गई और मनुष्य को बिना विशेष श्रम के उपलब्ध हर रचना को खरीदने-बेचने लगा! वनस्पति, पशु-पक्षी, खनिज और-तो-और ज्ञान भी बाजार तक पहुँच गया। प्रचुर मात्र में होने के बावजूद मनुष्य ने ऐसी व्यवस्था बना ली कि अनेकों के पास इनका अभाव है। मैं तो डर गया, अगर मैं भी प्रगट हो जाऊँ तो मैं भी बाजार में बिकने लगूँगा। इसीलिए मैंने अपने को छिपाकर रखा हुआ है। लेकिन क्या भरोसा! मुझे भी ढूंढ कर निकाल लें, मैंने मनुष्य को ऐसी संभावनाएं तो दे ही रखी हैं कि वह मुझे ढूंढ ले। यदि मेरा आदर-सम्मान हो और मेरा सही इस्तेमाल हो तो मैं प्रकट हो जाऊँ।

(वंदना खन्ना)

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1 टिप्पणी:

महेश लोधा ने कहा…

I have received some comments on this post on my direct WhatsApp or by telephone call. My gratitude to all of them. It’s your comments and suggestion which keeps me going and encourage others to read / listen it. Naming all of them is a herculean task, some of them are as follows:
सर्वश्री गौरी शंकर शारडा, ननद लाल रुंगटा, संतोष बुधिया, उमेश मेहता, मनोज जोशी, डिबंकर चैतन्य, सुशील मिश्रा, लेखराम नागर।

सूतांजली मई 2024

  गलत गलत है , भले ही उसे सब कर रहे हों।                     सही सही है , भले ही उसे कोई न कर रहा हो।                                 ...