भय दासता है,
कार्य स्वतन्त्रता है,
साहस विजय है।
श्री माँ (पांडिचेरी )
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सत्याग्रह
हमारे पूर्वज अपने किसी भी सिद्धांत को स्पष्ट
करने के लिए दृष्टांत का प्रयोग करते थे। हमारे प्राचीन ग्रंथ ऐसे दृष्टांत से भरे
हुए हैं। कहीं सिद्धांत पहले है फिर दृष्टांत तो कहीं दृष्टांत पहले और फिर सिद्धांत।
यह दृष्टांत, कहानी या उपमा न होकर
एक सत्य घटना ही है जो कुछ वर्षों पहले ही जयपुर के सबसे बड़े अस्पताल, सवाई मानसिंह अस्पताल में घटी थी। डॉ. वीरेंद्र सिंह अस्पताल के अधीक्षक थे और गांधी के सत्याग्रह में उनका गहरा
विश्वास था। अधीक्षक बनने के कुछ समय बाद ही अस्पताल के ठेका कर्मचारियों ने एक दिन की नोटिस देकर अनिश्चितकालीन
हड़ताल शुरू कर दी। ठेका कर्मचारियों की मुख्य मांग थी, पैसे
बढ़ाओ!
ठेके के कर्मचारियों के भुगतान के नियम
राजस्थान प्रदेश के समस्त सरकारी कार्यालयों और अस्पतालों के लिए समान होते हैं। अतः अकेले सवाई मानसिंह अस्पताल के ठेका कर्मचारियों के पैसे बढ़ाने
की बात समझ से बाहर थी। पैसों के अलावा उनकी सारी मांगें मानने
में अधीक्षक को कोई भी कठिनाई नहीं थी। यह
निर्णय भी हुआ कि तनख्वाह का निर्णय एक कमिटी पर छोड़, बाकी मांगें मान ली जाए। ठेकाकर्मियों ने समझौता स्वीकार भी कर लिया। समझौता
सम्पन्न भी हुआ। लेकिन फिर कर्मियों का मन पलट गया, उन्हें लगा तनख्वाह बढ़ाने की मांग
भी स्वीकार हो जाएगी। अतः हड़ताल भी तभी खत्म करेंगे। अस्पताल के अध्यक्ष डॉ.सिंह को लगा कि उन्हें ठगा गया है और उन्होंने
निश्चय किया कि अब तो हड़ताल का मुकाबला करेंगे।
दूसरे
दिन सफाई कर्मचारी भी हड़ताल में शामिल हो गए। नगर निगम से बात
की लेकिन मदद नहीं मिली। चीफ सेक्रेटरी से बात की तो उन्होंने
नगर निगम को सफाई कर्मचारी भेजने के आदेश दिए लेकिन जब नगर निगम
की वैन कर्मचारियों को लेकर आई तो हड़ताली
कर्मचारियों ने उनके खिलाफ नारे लगाए, उनसे बातचीत की और वे सभी बिना काम किये लौट गए।
अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारियों ने राय
दी कि पुलिस की मदद से कर्मचारियों को हटाया जाए। लेकिन अध्यक्ष बल
प्रयोग के पक्ष में नहीं थे। हड़ताल के मुकाबले के लिए प्रथम
चरण में कुछ छात्रों को कुछ समय कम्प्युटर पर बैठाया गया, फिर रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने गोखले
हॉस्टल एवं इंजीनियरिंग के छात्रों की मदद ली। आइ. टी. सचिव ने
भी 20 लोगों को भेज दिया। उसी समय ई.टीवी और
अखबार में दर्शकों और पाठकों से अपील करते हुए अध्यक्ष ने अनुरोध किया ‘वर्षों तक बीमारी में आपके सहायक बन सवाई मानसिंह अस्पताल को आज आपकी जरूरत है आप स्वैच्छिक काम के लिए
आमंत्रित हैं।’ रोगियों की वेदना की बात सुन, जयपुर की जनता
में संवेदना जागृत हुई। पहले दिन
10 लोग आए, दूसरे दिन तो लोगों का तांता लग गया। जन सहयोग की इस अनूठी पहल
ने अस्पताल-व्यवस्था चरमराने से बच गई।
छठे दिन हड़ताली कर्मचारियों में बेचैनी
फैलने लगी और शाम तक उनका प्रतिनिधि मंडल
समझौते के लिए तैयार हो गया। उन्हें काम पर आने
कहा गया तो उन्होंने लिखकर देने कहा। लेकिन अध्यक्ष डॉ.सिंह ने
इंकार कर दिया। उन्हें पहले हस्ताक्षर के हश्र
के बाद दूसरा हस्ताक्षर करना उचित नहीं लगा। डॉ.सिंह अडिग
रहे। हड़ताल जारी रही। स्वयंसेवकों ने अस्पताल की व्यवस्था
संभाल ही रखी थी।
रात को हड़ताली नेता आए।
डॉ.सिंह ने इनकार करते हुआ कहा, "अब मैं तुमसे नहीं, सारे हड़ताली कर्मचारियों
से बात करूंगा। सुबह सबको ऑडिटोरियम में
इकट्ठे करो।" ऑडिटोरियम में करीब 800 लोग इकट्ठे हुए। उन्होंने हड़ताल की बात न करके बीड़ी, सिगरेट, शराब जैसे नशीली चीजों
के हानिकारक असर पर आधे घंटे का स्लाइड प्रोग्राम दिखाया। अंत
में कहा पिछले 8 दिनों की हड़ताल में न तुम्हारा कुछ बिगड़ा, न हमारा कुछ बिगड़ा। बिगड़ा उन दुखी रोगियों का,
जो यहां इलाज की उम्मीद में भर्ती हुए। मांगों पर तो बातचीत से
ही समाधान निकलेगा, हड़ताल से नहीं। हड़ताल-रूपी गलती का आपको
प्रायश्चित करना चाहिए।
‘प्रायश्चित! कैसे
प्रायश्चित?’, कर्मियों को बड़ा आश्चर्य हुआ।
अध्यक्ष ने पांच बातें
बताई : चोरी नहीं, कामचोरी नहीं, यूनीफॉर्म में रहें, रोगियों से मृदु बोलें, तथा बीड़ी,
गुटका और शराब का सेवन नहीं करें। इन 5 बातों को
जीवन में उतारने की प्रतिज्ञा लें?
सबों ने स्वीकार किया और लिखित
भी दे दिया। डॉ सिंह ने पैसे बढ़ाने के लिए सतत प्रयास का वादा किया। कर्मचारियों के जायज हक के लिए अध्यक्ष प्रयत्नशील
रहे लेकिन रोगियों के जीवन को खतरे में
डालकर हड़ताल जैसे ब्लैकमेल के सामने झुकने को तैयार नहीं हुए। इस
कठिन घड़ी में जयपुर की जनता के दिल में रोगियों की वेदना ने संवदेना जागृत की
और वे स्वयंसेवक बन आगे आए। प्रेस
ने इस घटना का उल्लेख 'सवाई मानसिंह अस्पताल में निकला सत्याग्रह
से हड़ताल का इलाज' के शीर्षक से किया।
यह था दृष्टांत, अगले अंक में सिद्धान्त
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