सूतांजली ०२/१२ जुलाई २०१९
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गांधी प्रासंगिक हैं – इन एक्शन
शक्ति
सम्पन्न और अपनी कठोरता के लिए चर्चित सरकार के सामने कमजोर और बार-बार क्रुद्ध तथा
अनियंत्रित भीड़ से मार खाने वाले जूनियर डाक्टरों ने अहिंसा की तलवार खींच
ली। सरकार ने उन्हे हर प्रकार से डराने धमकाने की कोशिश की। डॉक्टरों को तुरंत
हड़ताल समाप्त कर काम पर आने की चेतावनी दी गई,
हॉस्टल खाली करवाने की धमकी भी दी गई। इस वाकिए को सांप्रदायिक और राजनीतिक रंग
देने का भी प्रयत्न किया गया। लेकिन अहिंसा के हथियार से सुसज्जित डाक्टर बहादुरी
से डटे रहे। राज्य की सरकार ऐसी अवस्थाओं
में अपनी हिटलरी विचार के लिए बदनाम रही है। लेकिन इन सब के बावजूद डॉक्टर
टस-से-मस नहीं हुए। जल्दी ही माहौल बदलने लगा और पूरा देश जूनियर डॉक्टरों के साथ
खड़ा हो गया। कोलकाता में भड़की चिंगारी दूसरे शहरों और राज्यों में फैलने लगी। सरकार ने न्यायालय के दरवाजे पर
दस्तक दी। लेकिन न्यायालय ने भी सरकार को डॉक्टरों से सुलह करने की सलाह दी। आखिर
सरकार झुकी और डॉक्टरों से संवाद करने का मन बना लिया। संवाद का नतीजा भी लाभदायक
और संतोषजनक निकला। गतिरोध समाप्त हुआ। वातावरण सौहार्दपूर्ण और प्रेममय हो गया।
क्या
यह अहिंसा की हिंसा पर विजय थी? नहीं, महात्मा गांधी की भाषा में कहें तो अहिंसा के संग्राम में कोई नहीं
हारता। सब जीतते हैं क्योंकि अहिंसा जीतने में नहीं ‘हृदय परिवर्तन’ में विश्वास करती है। डॉक्टरों ने सरकार का हृदय परिवर्तन कर दिया। इस
बार तर्कों ने नहीं, बातों ने नहीं कार्य ने फिर सिद्ध किया
कि अहिंसा, हिंसा से ज्यादा असरदार है और गांधी प्रासंगिक हैं। अहिंसा से लड़े संग्राम
में किसी प्रकार की कटुता पैदा नहीं होती। अहिंसा बहादुरों का हथियार है, कमजोरों का नहीं।
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क्या कोई मौका आखरी होता है?
‘गांधी’
का एक अंक हाथ में है। अभी अभी ‘यह आखिरी मौका है!’ पढ़ा।
भला सा लगा। जाने पहचाने लेखक ने प्रारम्भ में कई बातें लिखीं लेकिन लेख के अंतिम
अनुच्छेद में गांधी को छूए बिना नहीं रह सके। जब उन्होने लिखा ‘हमारे यहाँ जो करप्शन (भ्रष्टाचार) है .......
उसे रोकना होगा। हमारे नेताओं की अंतरात्मा तो बेदाग हो’। तब उन्होने गांधी की ही बात दोहराई ‘पापी से नहीं पाप से घृणा करो।
इस
पत्रिका के कई लेखों से, वक्तव्यों से मेरा विरोध रहा है, और अपने विरोध को मैं जाहिर भी करता रहा हूँ। हम बार बार भटक जाते हैं। ‘पाप’ को छोड़ ‘पापी’ के पीछे पड़ जाते हैं। कांटे के प्रति इतने सजग हो जाते हैं कि फूल ओझल हो
जाते हैं। यह नहीं समझ पाते कि पापी गया और पाप रहा तो पाप नए पापी गढ़ लेगा।
इसी बात को रेखांकित करते हुए लेखक लिखते हैं ‘माफ कीजिएगा, हम दूसरों के ऐब बहुत देखते हैं, अपनी भी गलतियाँ
देखनी चाहिए। हम तो सेक्युलर थे और इन तथाकथित सेक्युलर पार्टियों की ही
हुकूमतें थीं ........ हिन्दू कोड बिल आया, फिर उसमें
बदलाव हुए, हिन्दू पर्सनल लॉं आया उसमें भी बदलाव होते रहे फिर
मुस्लिम पर्सनल लॉं में ऐसा क्या नायाब था कि हमने उसे छुआ ही नहीं? हम तो सेक्युलर हैं न, तो हमें तो सबके लिए बराबर होना चाहिए था, बराबर
दिखना चाहिए था! आपने ...... इतना भेद भाव क्यों रखा कि उसे
छूने से ही डरते-बचते रहे? ..........इसलिए हमें अपने सेक्युलरिस्म
को जाँचने और माँजने की जरूरत है......... हम नकली नहीं,
असली सेक्युलर बनें”। असली
सेक्युलरिस्म ऐसा नहीं है। दर असल हमने अपना छोड़ दूसरों का सिद्धान्त अपना
लिया है। गांधी ने कहा है सेक्युलरिस्म भारतीय शब्द नहीं है। यह एक पाश्चात्य
शब्द है, धर्मनिरपेक्षिता इसका सिर्फ हिन्दी अनुवाद
भर है। भारतीय मंत्र ‘सर्व धर्म समभाव’
है। सब धर्मों के प्रति एक सा भाव। हमें ‘धर्मनिरपेक्षिता’ को छोड़
‘सर्व धर्म समभाव’ को अपनाना होगा। भारत
की आम जनता ‘सब धर्मों को बराबर समझना’
तो समझ सकती है लेकिन ‘सब धर्मों को छोड़ना’ नहीं समझ सकती।
क्या
अभी की सरकार में केवल कांटे हैं और पिछली सरकार में केवल फूल था? ऐसा
नहीं है। ध्यान देने की बात है ‘तोड़ो
और राज करो’ में एक नया आयाम आ गया
है - भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता का। अब दल इस आधार पर हमें बाँट रहे हैं। एक दल भ्रष्टाचार
के प्रति निष्क्रिय और सांप्रदायिकता के प्रति सजग है तो दूसरा भ्रष्टाचार के प्रति
सजग लेकिन सांप्रदायिकता के मुद्दे पर निष्क्रिय है। क्या दोनों सीमाओं पर सजग
रहने की जरूरत नहीं है? क्या ऐसा संभव नहीं है? प्रकारांतर से हमें इन दोनों बुराइयों में से एक को चुनने के लिए विवश क्यों
किया जा रहा है? इस आधार पर देश को क्यों बांटा जा रहा है? सांप्रदायिकता हो या भ्रष्टाचार दोनों बुराई हैं,
पाप हैं, कांटे हैं। पाप कोई भी कम और ज्यादा नहीं
होता। दोनों ही त्याज्य हैं। दोनों का
विरोध करना है। अगर यह सरकार लौटती है तो अनेक कांटे रहेंगे लेकिन उनके साथ उसके फूल
भी रहेंगे। वैसे ही दूसरी सरकार आती है तो उसके साथ भी उनके कांटे और फूल दोनों
आएंगे। अत: अब, जब हमें राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त है तब
हमें सरकार के पाप का विरोध और पुण्य का समर्थन दोनों एक साथ करना चाहिए।
तभी सरकारों को पता चलेगा कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं। इससे जनता भी
समझदार बनेगी कि सरकार चाहे जो भी हो उन्हे सरकार का नहीं पाप का विरोध करना है
और पुण्य का समर्थन भी। तब जनता की जुबान खुलने लगेगी। तब जनता भी मूक दर्शक न
रह कर वाचाल होगी, सक्रिय होगी,
लोकतन्त्र में उनकी सहभागिता होगी। जब ऐसा होगा तभी ‘राम
राज्य’ अवतरित होगा, असली लोकतन्त्र
स्थापित होगा। नहीं तो एक का गुंडा-राज या दूसरे का भ्रष्टाचारी-राज या तीसरे का वंश-राज या चौथे
का जाति-राज या पाँचवाँ का (अ)धर्म–राज या छठवें का .......... यही चलता रहेगा, इन्ही में से किसी को चुनते रहेंगे। और ये सब हमें ठेंगा दिखा कर एक
दूसरे को सहयोग करके राजगद्दी पर बे-रोक-टोक कब्जा जमाये रखेंगे। जब इसमें सुधार
होगा तब राजनीतिक आजादी से बाद की सामाजिक और आर्थिक आजादी प्राप्त होगी।
अंत
एक बात और कोई भी मौका आखिरी नहीं होता है। जब आप अंतिम दरवाजे पर पहुँचते हैं तब
आगे का दरवाजा स्वत: खुल जाता है, और हम पाते हैं
कि मौके और भी हैं।
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पढे-लिखे व विशेषज्ञों को हमारे
मुद्दे पता ही नहीं
माचनूर, एक छोटा सा गाँव है, तेलंगाना में। इसकी खास बात यह
है कि यहाँ की दलित महिला किसानों ने सामुदायिक रेडियो स्थापित कर रखा है। इसका
प्रसारण रोज संध्या ७ से ९ तेलुगू में होता है। यह है मन की बात वाला संगम
रेडियो।
गाँव, खेती, संस्कृति, तीज-त्योहार
और स्वास्थ्य के साथ साथ पर्यावरण और गाँव के समाचार और व्यंजन बनाने के तरीके
जैसे कार्यक्रम होते हैं। साक्षात्कार एवं बातचीत भी होती है। पुराने लोकगीतों का
बड़ा संग्रह है यहाँ। खेती-किसानी के गीत, बुआई और कटाई के
दिन की सूचना के साथ जन्मदिन की शुभकामनाएँ व मवेशी गुम होने की सूचना भी दी जाती
है। यह कार्यक्रम १५० गांवों में सुना जा सकता है।
रेडियो
से जुड़ी ज़्यादातर महिलाएं कम पढ़ी लिखी हैं। वे कहती हैं “हम पढे-लिखे व
विशेषज्ञों की मदद नहीं लेते,
क्योंकि उन्हे हमारे मुद्दे पता ही नहीं।“
ये सब महिलाएं खुद किसान हैं और रेडियो से किसानों की मदद कर रही हैं।
गांधी
मार्ग – जनवरी फरवरी २०१९
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कौन जानता गांधी को - जून २०१९
गर्मी
के कहर के बावजूद जून के मध्य में स्कूलें खुलने लगी और इसके साथ ही प्रारम्भ हुआ हमारा
गांधी क्विज। पहला क्विज कोलकाता की प्रथम बालिका विद्यालय श्री शिक्षा यतन स्कूल
में किया गया। विद्यालय की सेक्रेटेरी जनरल श्रीमती ब्रताती भट्टाचार्य एवं अन्य
अधिकारी मौजूद थे। दूसरा कार्यक्रम श्री दिगंबर जैन बालिका विद्यालय में प्रधानाध्यापिका
श्रीमती हरप्रीत घोष एवं अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में सफलतापूर्वक आयोजित किया
गया। क्विज की विस्तृत जानकारी gandhiquizatkolkataschools.blogspot.com
पर उपलब्ध है।
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हमें
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहता है। - संपादक
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