गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

सूतांजली, अक्तूबर २०२०

 सूतांजली

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वर्ष : ०४ * अंक : ०३                                   🔊                                                       अक्तूबर * २०२०

बुराई खोजने का शौक है

तो आईने का इस्तेमाल कीजिये

दूरबीन का नहीं

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चार्ली चैपलिन की फिल्म “द ग्रेट डिक्टेटर(००.०० -०.९००)

(अँग्रेजी फिल्म जगत के जाने माने विदूषक और निर्माता चार्ली चैपलिन महात्मा गांधी को बड़े आदर की दृष्टि से देखते थे। लेकिन जब उन्हें पता चला कि गांधी मशीनों के खिलाफ हैं तब वे बड़े व्यथित हुए। उन्हे यह बात न तो गंवारा हुई और न ही समझ आई। जब गांधी लंदन पहुंचे तब चैपलिन उनसे मिलने उनके पास लंदन की झोंपड़-पट्टी के इलाके में गए जहां गाँधी ठहरे हुए थे। उनकी यह प्रसिद्ध मुलाक़ात 22 सितंबर 1931 को हुई। चैपलिन ने गाँधी से बड़े  झिझकते हुए पूछा  कि वे मशीनों के खिलाफ क्यों हैं? गाँधी ने स्पष्ट शब्दों में उन्हे बताया कि वे मशीनों के खिलाफ नहीं हैं। और फिर उन्होंने चार्ली को विस्तार से स्वतन्त्रता का अर्थ समझाया । उन्होंने चार्ली को बताया कि जब-जहाँ  मशीन आदमी की स्वतन्त्रता छीनती है तब वहाँ मैं मशीन के प्रयोग का विरोध करता हूँ। चार्ली चैपलिन गाँधी की बातों से पूर्ण रूप से संतुष्ट और आश्वस्त होकर वहाँ से निकले। उन पर गाँधी की बातों का अमिट प्रभाव पड़ा और तब निर्माण हुआ उनकी बहुचर्चित फिल्म द ग्रेट डिक्टेटर” का। इस फिल्म में गाँधी का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।)

द ग्रेट डिक्टेटर का पोस्टर 

कुछ समय पहले चार्ली चैपलिन की फिल्म “द ग्रेट डिक्टेटर” का एक दृश्य व्हाट्सएप्प पर बहुत साझा किया गया। आपको भी यह विडियो जरूर मिला होगा। इस विडियो में चार्ली एक सेना नायक के वेश में अपार जन समुदाय को संबोधित कर रहे हैं। शायद आपने इसे देखा होगा। उसे इस परिदृश्य में फिर से एक बार देखिये  और समझिये। इस दृश्य के विडियो का लिंक दे रहा हूँ। प्रस्तुत है इस भाषण का हिन्दी अनुवाद, आपके लिये:

फिल्म का एक दृश्य
 “मुझे खेद है लेकिन मैं सम्राट बनना नहीं चाहता, मुझे यह कार्य नहीं आता। मैं न किसी को जीतना चाहता हूँ और न ही किसी पर हुकूमत चलाना चाहता हूँ। अगर संभव है तो मैं सबों की सहायता करना चाहूँगा – ज्यू, नास्तिक, काला या गोरा कोई भी। हम सब एक दूसरे की सहायता करना चाहते हैं। मानव का यही स्वभाव है। हम सब एक दूसरे के आनंद के साथ जीना चाहते हैं, उनके दु:ख के साथ नहीं। हम एक दूसरे को घृणा करना नहीं चाहते। इस संसार में हर किसी के लिए जगह है, और हमारी यह पवित्र भूमि बहुत समृद्ध है और हर किसी की आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है। जीने की कला स्वतन्त्र और खूबसूरत हो सकती है, लेकिन हम रास्ता भूल गए हैं। लालच ने हमारी आत्मा में जहर घोल दिया है, दुनिया ने घृणा की दीवारें खड़ी कर दी हैं, भेड़-चाल ने हमें दु:ख और रक्तपात में ढकेल दिया है। हमारी चाल तेज हो गई है लेकिन हमने अपने आप को कमरों में बंद कर लिया है। मशीनों ने हमें बहुतायत में सामग्री उपलब्ध कराई है लेकिन हमारी जरूरतें अधूरी रह गई हैं। हमारे ज्ञान ने हमें निंदक बना दिया है, हमारी चतुराई ने हमें कठोर और निर्दयी बना दिया है। हम सोचने बहुत लगे हैं लेकिन संवेदनहीन हो गये हैं। हमें मशीन से ज्यादा मानवता की आवश्यकता है। चतुराई के स्थान पर हमें दया और सौम्यता की अधिक आवश्यकता है। इन गुणों के अभाव में हम जीवन को हिंसक बना देंगे और उसे खो देंगे। हवाई यात्रा, रेडियो ने हमें एक दूसरे के नजदीक लाया है। इन आविष्कारों ने हमारी मानवतावादी दृष्टिकोण को ही उजागर किया है। हम, सार्वभौमिक भाईचारे और हमारी एकता की सोच को प्रतिपादित करते हैं। अभी मेरी आवाज पूरे संसार के करोड़ों लोगों तक पहुँच रही है। करोड़ों निराश पुरुष, महिला और बच्चे, जो एक व्यवस्था के शिकार हैं जिसने उनको यातनायें दीं और निरीह व्यक्तियों को जेलों में ठूँसा है। वे सब जो मेरी आवाज सुन रहे हैं, मैं उनसे विनती करता हूँ कि आप निराश न हों। हमारे ऊपर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा है, लेकिन हमारे लालच, मानव के विकास की कड़ुवाहट, मानव की घृणा सब समाप्त हो जायेंगी और तानाशाही समाप्त होगी। तानाशाहों को जनता से मिली ताकत, वापस जनता के हाथों में चली जायेगी। जब तक मरने के लिए तैयार हैं स्वतन्त्रता का नाश नहीं हो सकता। सैनिकों, पाशविक लोगों के सामने समर्पण मत करो। वे जो तुमसे घृणा करते हैं, सैनिकों की जिंदगी में तुम्हें गुलाम बनाते हैं, तुम्हें बताते हैं कि तुम्हें क्या सोचना है, तुम्हें क्या खाना है और कैसा अनुभव करना है,  तुम्हारे दिमाग में छेद करते हैं, तुम्हें पशु समझते हैं और तुम्हें तोपों का चारा समझते हैं उन जैसे अप्राकृतिक लोगों के सामने तुम समर्पण मत करो। ये यांत्रिक लोगों के पास दिल और दिमाग भी यांत्रिक ही है। तुमलोग न तो यंत्र हो न ही पशु। तुमलोग इंसान हो। तुमलोगों के पास मानव को प्यार करने वाला मानवीय दिल है। तुमलोग घृणा नहीं करते हो। केवल वे जो अप्राकृतिक हैं, जिनके पास प्यार का सागर नहीं है केवल वही घृणा करते हैं। सैनिकों युद्ध गुलामी के लिए नहीं स्वतन्त्रता के लिए करो। 17वें अध्याय में संत ल्यूक ने कहा है, “ईश्वर का राज्य मानव के अंदर है।” किसी एक व्यक्ति में नहीं, व्यक्तियों के किसी एक दल में नहीं बल्कि हर व्यक्ति में है – तुम्हारे अंदर है। इंसान में क्षमता है, क्षमता है यंत्र बनाने की, क्षमता है आनंद उत्पन्न करने की। तुम्हारे पास ताकत है जीवन को मुक्त और सुंदर करने की, इस जीवन को एक सुंदर और खूबसूरत साहसिक यात्रा में बदलने   की।  तब गणतन्त्र के नाम पर हम उस ताकत का प्रयोग करें। हम सब एक हो जाएँ, हम सब एक नया  संसार बनायें, एक सभ्य संसार जिसमें सब के पास काम हो। एक ऐसा संसार जिसमें युवाओं का भविष्य हो और बुजुर्गों की सुरक्षा हो। इस प्रकार के आश्वासन दे कर निर्दयी लोगों ने ताकत और सत्ता  हासिल की। लेकिन उन लोगों ने झूठ बोला। उन लोगों ने अपना वादा पूरा नहीं किया, और कभी करेंगे भी नहीं। तानाशाहों ने अपने आप को स्वतंत्र किया लेकिन जनता को गुलाम बना लिया। अब हम सब एक हो जायें, उस वादे को पूरा करने के लिये। हम लोग एक जुट होकर संघर्ष करें संसार को आजाद करने के लिए, संसार को उसकी सीमा से मुक्त करें, लालच, घृणा और असहिष्णुता से मुक्त करें। हम एक उद्देश्य के लिए संघर्ष करें। एक संसार के लिए जहां विज्ञान और विकास मानवमात्र की खुशी के लिए हो। सैनिकों, गणतन्त्र के नाम पर हम सब एक जुट हो जायें।        

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धर्म क्यों? (०९.०० - १७.०३)

हर जीव, छोटा हो या बड़ा, मानव हो या पशु, कीट पतंगे या पेड़-पौधे-वनस्पति इन सबों में कुछ समान लक्षण होते हैं। इनमें से दो विशेष लक्षणों पर हम गौर करेंगे। ये हैं सुरक्षित रहना (to preserve) और वृद्धि करना (to propagate)। ये दोनों लक्षण हम हर जीव में देखते हैं। हर जीव अपने आप को बचाना चाहता है, खुश रहना चाहता है। और जब संरक्षित हो जाता है तब अपने आप को फैलाना चाहता है। हर जीव खुद तो नहीं रह सकता लेकिन अपने जैसा बनाये रखना चाहता है। हर जीव मुश्किलों को झेल कर, खुश रहना चाहता है और अपनी प्रजाति को बचाये रखना चाहता है। सामान्य रूप से यह छोटे से छोटे जीव से लेकर बड़े से बड़े जीव में देखने को मिलता है। केवल जीव ही नहीं बल्कि हर संस्था, छोटे से समुदाय या क्लब से लेकर बड़े से बड़े देश तक में यह लक्षण देखने को मिलता है।

हमारे शास्त्रों ने इन दोनों गुणों को अर्थ और काम कहा है। ये दोनों गुण ही हर जीव का लक्ष्य है – प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से। चाहे या अनचाहे हम सब इसी ओर बढ़ रहे हैं। हमें लगता है कि हमारे अनेक लक्ष्य हैं और अलग अलग हैं लेकिन इन सबों पर गौर किया जाये, उनकी विवेचना की जाये  तो ये सब सिमट कर इन्हीं दो पर आजायेंगे – अर्थ और काम। अर्थ का अर्थ, शक्ति है जिससे हमें सुरक्षा प्राप्त होती है। धन का भी यही कार्य है। धन, अर्थ का एक ही हिस्सा है। इसका अर्थ केवल धन नहीं है। काम का अर्थ काम-वासना नहीं है। यह इसका संकुचित अर्थ है। काम से तात्पर्य इच्छाओं से है, कामनाओं से है। ये कामनाएँ सूक्ष्म भी हो सकती हैं, विराट भी। इन कामनाओं में एक कामना अपनी कामनापूर्ति भी है। यह बताना नहीं पड़ता, यह स्वत: पैदा होती है। इसकी तालिका अनंत है, लगातार बढ़ती रहती हैं, बदलती रहती हैं। पशुओं में भी अर्थ की कामना होती  है। उनके अर्थ में धन नहीं होता है लेकिन शक्ति की कामना होती है। मनुष्य और पशु में यही समानता होती है। अर्थ और काम, ये दो पुरुषार्थ, मनुष्य और पशु दोनों में होती हैं।

मनुष्य और पशु में एक अंतर है इच्छाशक्ति की। स्वतंत्र इच्छाशक्ति मनुष्य में बहुत स्पष्ट है और उभर कर दिखती है, जबकि पशुओं में इसकी कमी है।  पशुओं में यह इच्छाशक्ति स्वाभाविक होती है। मानव अपने बारे में बहुत संवेदनशील होता है जबकि पशुओं में यह नहीं या नहीं के बराबर होता है। ये दो गुण मनुष्य की उन्नति के भी साधन हैं और उसकी अवनति के भी। मनुष्य में स्वाभाविक प्रवृत्ति के अलावा कुछ अलग, कुछ नया बनाने की प्रवृत्ति होती है। मानव में सौंदर्य की समझ होती है। मानव की इस प्रवृत्ति के कारण ही इतनी सभ्यता, कला, संगीत, साहित्य, संस्कृति का विकास हुआ है। विश्व की 70% अर्थ व्यवस्था इसी पर आधारित है। आवश्यकता पर आधारित अर्थ व्यवस्था तो सिर्फ 30% ही है। दुनिया इसी के चारों तरफ घूम रही है। इसे ही विकास भी कहते हैं। यही नई सोच, नई तकनीक, नये  निर्माण करता है।

यह तो हुआ इसका सकारात्मक पक्ष। अब थोड़ा इसका नकारात्मक पक्ष भी देखें । यही जलन उत्पन्न करता है। यही दुख पैदा करता है। ज्यादातर दुख ठीक भोजन – पानी मिलने के बाद शुरू होता है। खाली पेट का दुख अलग तरह का है और उसका समाधान भी बहुत आसान है। लेकिन भरे पेट का दुख अलग किस्म का है और उसे मिटाना बहुत कठिन है।  मैं अमीर हूँ, मैं अपनी गाड़ी से खुश हूँ, मेरे बेटे की शादी से मैं सुखी हूँ। लेकिन रातों रात किसी और की अमीरी के किस्से सुन कर, पड़ोसी की गाड़ी देख कर, दोस्त के बेटे की शादी में शरीक होकर मैं दुखी हो जाता हूँ। किसी जलसे में खुशी-खुशी जाता हूँ, वहाँ कोई शब्द मेरे कानों में पड़ जाते हैं और मैं दुखी हो जाता हूँ। यह मेरे स्वतन्त्र इच्छाशक्ति और मैं कैसा दिखता हूँ का नकारात्मक पक्ष है। सारे जलन का कारण यही है। हमारे सारे दुख इसी कारण होते हैं।

हमारा अर्थ और काम पुरुषार्थ, हमारी इच्छाशक्ति और मैं कैसा दिखता हूँ को मिला कर एक भयंकर मिश्रण पैदा कर देता है। यह हमें जीवन भर उलझाये रखता है। अगर हम इस पर ध्यान न दें तो बचपन से बुढ़ापा तक इसी उलझन में निकल जाये। हमें अपना रुतबा हर समय, निरंतर नवीनीकरण कराते रहना पड़ता है। सारा खेल इसी का है। ये हमारे उपजाये दुख हैं। इसका निवारण भी आसान नहीं है। तब अर्थ और काम में एक और चीज लाई जाती है, वह है धर्म। धर्म हमारी सुरक्षा की भावना या असुरक्षा के डर को नियमित करता है, दिशा देता है। अगर यह नहीं हो तो यह तबाही मचा देगा। हर भोग की सीमाएं निर्धारित करना होता है। यह धर्म बताता है। धर्म याद दिलाता रहता है कि भोग की सीमाएं है, एक दिन यही दर्द का कारण बन जाएंगे। इस प्रकार धर्म एक पुरुषार्थ बन जाता है। अगर यह न हो तो फिर चार्वाक बन जाता है जब तक जियो मजे से जियो, ऋण लेकर घी पियो।  बैंक से लोन लो और मजे करो। मरने के बाद तो वह रोये जिसने ऋण दिया। लेकिन अगर सब ऋण लें और न चुकाएं तो फिर एक ऐसी परिस्थिति आ जायेगी कि कोई भी ऋण देने वाला नहीं बचेगा। फिर क्या होगा? अत: धर्म तो लाना ही पड़ेगा, नहीं तो अंत आ ही जाएगा। धर्म का कार्य है अपरिमित, निरंकुश अर्थ और काम में एक रुकावट लाना जिससे प्रणाली चल सके, बंद न हो जाए। अगर हम उसे नजर अंदाज करें तो बच नहीं सकते, अन्त निश्चित है।  चूंकि धर्म का कार्य, अर्थ और काम को नियंत्रित करना है, इस कारण धर्म बहुतों की आँखों का कंकड़ बन जाता है। 

(आचार्य श्रद्धेय श्री नवनीतजी द्वारा श्री औरोबिंदो आश्रम, मधुवान, रामगड़ में ४ जून २०१९ को दिये गए व्याख्यान से संकलित)

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ज़ूम पर सूतांजली के आँगन में

सितम्बर   

सितम्बर माह में इसके दो  प्रसारण हुए। रविवार 13 सितम्बर को देश के “सुपरिचित चेहरों के अनसुने संस्मरण” के अंतर्गत सुश्री रामकृष्ण परमहंस, मुकेश, धर्मवीर भारती, दिलीप कुमार, भवानी प्रसाद मिश्र, जोश मलीहाबादी, पंडित रवि शंकर, हरिवंश राय बच्चन एवं लता मंगेशकर के संस्मरण सुनाये गये। इस कार्यक्रम का यू ट्यूब लिंक ->  

https://youtu.be/Tw6zaG5slAE

27 सितम्बर को गाँधी की अहिंसा विषय पर प्रोफेसर प्रेम आनंद मिश्र, विभागाध्यक्ष , अहिंसा शोध भवन, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद ने सूचिन्तित वक्तृता प्रदान की। श्री प्रियंकर पालीवाल, कवि, समीक्षक, संपादक ने विषय प्रवर्तन किया। श्री राजेन्द्र केड़िया ने धन्यवाद ज्ञापन किया। श्रोताओं की अनेक जिज्ञासाओं एवं  शंकाओं का वक्ता ने समुचित निवारण किया। इस वक्तृता का यू ट्यूब लिंक ->   https://youtu.be/t0x9DuMM9PA

अक्तूबर

अक्तूबर माह में इसके दो  प्रसारण करने की इच्छा है, रविवार 11 एवं 25 अक्तूबर को। त्यौहारों का मौसम होने के कारण व्यवधान भी हो सकता है। यथा समय इसकी सूचना व्हाट्सएप्प एवं मेल पर दी जायेगी। अगर आपको सूचना नहीं मिल रही है तो कृपया अपना नाम एवं फोन नम्बर या ई-मेल हमें भेजें, sootanjali@gmail.com पर। आपकी उपस्थिती और सहयोग के लिए हम आपके आभारी हैं।

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अपने सुझाव (suggestions) दें, आपको सूतांजली कैसी लगी और क्यों, नीचे दिये गये एक टिप्पणी भेजें पर क्लिक करके। आप अँग्रेजी में भी लिख सकते हैं।

3 टिप्‍पणियां:

Rashmi Haralalka ने कहा…

The articles were very inspiring.A zoom meeting regarding this matter is very necessary to get a better knowledge.Thank you Mahesh bhaiya.

Unknown ने कहा…

आप बहुत ही सकारात्मक और ज्ञान अर्जित करने वाला कार्य कर रहे हैं।
ईश्वर आपको हमेशा आगे रखे। मेरा ह्रदय से साधुवाद।

उमेश मेहता
दिल्ली
9810156843

Unknown ने कहा…

आप बहुत ही सकारात्मक और ज्ञान अर्जित करने वाला कार्य कर रहे हैं।
ईश्वर आपको हमेशा आगे रखे। मेरा ह्रदय से साधुवाद।

उमेश मेहता
दिल्ली
9810156843

सूतांजली दिसम्बर 2024

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